तल्लाफुज़ ना था साफ़, होंठ भी कप-कापते थे,
उनसे मोहोब्बत के इसहार में, हम खुद ही घुटते जाते थे,एक रोज़ सोचा, कर देंगे, उनसे हाल-इ-दिल बयान,
पर सामने उनको पा कर, होंठ खुद-बी-खुद सिल जाते थे...
हिम्मत करके सोचा, कर देंगे इसहार-इ-दिल,
दिल को समझाया, ना तड़पने देंगे तुझको एक पल भी,
जब सामने उनके जा कर, हुए खड़े हम यूँ इस कदर,
शोख नज़रों से वो जो मुस्कुराये, देख नज़रों को, हम सब भूल जाते थे...