
एक शख्स बैठा पास में,
एक नए अंदाज़ में,
कभी झाँक, कभी ताकता,
हर चेहरा नये लिबास में,
कभी हिलता, कभी डुलता,
एक नये अंदाज़ में,
एक शख्स बैठा पास में ।
बैचैन नज़रें ताकती, आँखें, सवालों सी है झांकती,
कुछ पूछती, कुछ जानती,
कुछ जवाब मुझसे मांगती,
मैं नज़रें चुरा खो जाता अपने लफ़्ज़ों में,
रह जाता तनहा वो, खो जाता अपने जज्बों में,
कभी झांकता, कभी ताकता,
हर चेहरा नये लिबास में,
एक शख्स बैठा पास में,
एक नए अंदाज़ में ।।
