लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Friday, August 2, 2013
एक आस...
एक आस लिए जी रहा था मैं,
कल सुबह होने की,
दिलों के घाव को सी रहा था मैं,
कल सुलह होने की,
बिखर तो मैं कल ही गया था,
फिर भी जी रहा था, कल सुबह होने की,
दिलों के घाव को सी रहा था मैं,
कल सुलह होने की ।
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