आज खुद को मोड़ पर, फिर अकेला पाया है,
राह उलझी सी हुई है, दिल मेरा घबराया है,चार दिन जीवन के गुज़रे, थे सवेरे कल मेरे,
महका आलम, था सवेरे, जीवन बगिया में मेरे,
महके फूलों का शामियाना, सज रहा था बाग़ में,
मैं निहारे देखता था, एक नए अंदाज़ में,
अब नदारात है वहां से, बगिया, महका वो आलम,
बंज़रों सी पड़ी है, सूखी धरती साफ़ सी,
मिटटी की परत सी, जर-जर मेरी काया है,
राह उलझी सी हुई है, दिल मेरा घबराया है,
आज खुद को मोड़ पर, फिर अकेला पाया है...