Tuesday, June 15, 2010

आज खुद को मोड़ पर...

आज खुद को मोड़ पर, फिर अकेला पाया है,
राह उलझी सी हुई है, दिल मेरा घबराया है,
चार दिन जीवन के गुज़रे, थे सवेरे कल मेरे,
महका आलम, था सवेरे, जीवन बगिया में मेरे,
महके फूलों का शामियाना, सज रहा था बाग़ में,
मैं निहारे देखता था, एक नए अंदाज़ में,
अब नदारात है वहां से, बगिया, महका वो आलम,
बंज़रों सी पड़ी है, सूखी धरती साफ़ सी,
मिटटी की परत सी, जर-जर मेरी काया है,
राह उलझी सी हुई है, दिल मेरा घबराया है,
आज खुद को मोड़ पर, फिर अकेला पाया है...

Friday, June 11, 2010

डर से सहमा...

डर से सहमा जकड़ा मैंने, आज खुद को पाया है,
दिल धड़कता तेज़, रगों में डर का साया है,
धडकनों की रफ़्तार तेज़, दिल में हलचलें भी तेज़ है,
किस से डर लगता है, ये तो लगता अपना साया है...
सुबह जागे थे सवेरे, मुस्कुराते से हुए,
मासूम सा था चेहरा, साथ मुस्कान के मेरे,
जाने ज़िन्दगी के मन में आज, क्या नयी हलचल मची
डर से सहमा जकड़ा मैंने, आज खुद को पाया है...

Tuesday, June 1, 2010

जाने ज़िन्दगी...

जाने ज़िन्दगी के कौन से मोड़ पर, आ खड़ा हूँ मैं,
लगता है राह-इ-मंजिल, सब छोड़ चला हूँ मैं,
दूर अन्धकार में, बूँद सी रौशनी की लौ तिमतिमती है,
रास्ता लगता है मुश्किल, इसलिए छोड़ चला हूँ मैं,
पर न जाने कौनसी बात, अन्दर ही अन्दर कचोटती है मुझे,
डर लगता है अब, काँटों पर चलने में,
इसलिए राह-इ-मुश्किल सब छोड़ चला हूँ मैं...

लिखने से कभी किसी ने, न पेट मेरा भर दिया...

ज़िन्दगी की चाह ने, ज़िन्दगी से दूर कर दिया,
लिखने की चाह ने, दुनिया से मसरूफ कर दिया,
न लिखता अगर तो क्या करता, सोचा करता हूँ रात दिन,
लिखने से कभी किसी ने, न पेट मेरा भर दिया,
तारीफ़ बा-मुस्तेद मिली हर दरवाजे मुझे,
पर रोटी की भूख ने, बे-हाल मुझको कर दिया,
न लिखता अगर तो क्या करता, सोचा करता हूँ रात दिन,
लिखने से कभी किसी ने, न पेट मेरा भर दिया...