Tuesday, June 1, 2010

जाने ज़िन्दगी...

जाने ज़िन्दगी के कौन से मोड़ पर, आ खड़ा हूँ मैं,
लगता है राह-इ-मंजिल, सब छोड़ चला हूँ मैं,
दूर अन्धकार में, बूँद सी रौशनी की लौ तिमतिमती है,
रास्ता लगता है मुश्किल, इसलिए छोड़ चला हूँ मैं,
पर न जाने कौनसी बात, अन्दर ही अन्दर कचोटती है मुझे,
डर लगता है अब, काँटों पर चलने में,
इसलिए राह-इ-मुश्किल सब छोड़ चला हूँ मैं...

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