Monday, August 30, 2010

गम इतना दिया की जीना सिखा दिया... 

चेहरे पर नकाब चढ़ाना सिखा गया कोई,
गम में भी मुस्कुराना सिखा गया कोई,
रोते थे, छुप-छुप कर अँधेरे कोनो में,
गम को भी इस कदर छुपाना सिखा गया कोई,
हम तो फिरते थे, राहों में आवारा,
न था गम, न था ख़ुशी का सहारा,
न घुटते थे अंदर-अंदर, न गम छुपा पाते थे,
बस खुद दर्द सहकर, दूसरों को मुस्कुराते थे,
पर न जाने रब के दिल में क्या सूझी, एक छोटा सा दिल बना दिया,
गम इतना दिया की जीना सिखा दिया...

Tuesday, August 24, 2010

आज सुबह जा कर मयखाने...

आज सुबह जा कर मयखाने, मैंने पैमाना तोड़ दिया,
मिलते थे जहाँ जाम से जाम, वो मयखाना छोड़ दिया,
सोचा किये, अब ना पियेंगे इस पैमाने के बाद,
पर साकी ने जो जाम दिया, फिर मयखाना जोड़ दिया...

Tuesday, August 17, 2010

मिली हमे आज़ादी...

मिली हमे आज़ादी, पर क़त्ल-इ-आम सा क्यूँ है,
जीती हमने बाजियां, दिल परेशान सा क्यूँ है,
लोग गुम-सुम चुप-चाप है, अंदर घमासान सा क्यूँ है,
आज एक शक्श मुझसा, परेशान सा क्यूँ है,
रात जश्न-इ-आज़ादी का, मानते फिरें इस कदर,
सोचा किये कल सुबह सुहानी होगी,
रोशन होंगे नए चिराग, फिर नयी कहानी होगी,
पर सुबह पहले सी थी, एक नयी मुस्कान लिए,
रोशन हुआ दिल में चिराग, फिर नयी पहचान लिए,
कुछ कर-गुजरने की चाह ने फिर मुझे झकझोर दिया,
रोशन फिर एक नए चिराग ने, एक नया उपहार दिया,
आज गुलामी की जंजीरों से फिर मैं आज़ाद हुआ,
आज पुरानी ज़िन्दगी में फिर नया परवान चढ़ा,
ठान लिया मन में, फिर कुछ कर दिखाना है,
जश्न-इ-आज़ादी का दीप, मुझको फिर जलना है,
जो खो गया कहीं राहों में, खो दी जिसने पहचान कहीं,
उस भारत भूमि को, फिर से मान दिलाना है,
जश्न-इ-आज़ादी का फिर से दीप जलना है...

Saturday, August 14, 2010

इन शोख-शोख दो नैनों से...

इन शोख-शोख दो नैनों से, ना देख मुझे ज़ालिम कातिल,
इस शोख अदा के मद-मस्त दीवाने, हम तो बहुत पहले से थे,
वो जाम गुलाबी होंठों से, हर रोज़ पिया कर लेते थे,
अब जाम मिला जो हांथों में, उस मैय को खोजा करते थे...