लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Saturday, August 14, 2010
इन शोख-शोख दो नैनों से...
इन शोख-शोख दो नैनों से, ना देख मुझे ज़ालिम कातिल, इस शोख अदा के मद-मस्त दीवाने, हम तो बहुत पहले से थे, वो जाम गुलाबी होंठों से, हर रोज़ पिया कर लेते थे, अब जाम मिला जो हांथों में, उस मैय को खोजा करते थे...
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