Tuesday, August 17, 2010

मिली हमे आज़ादी...

मिली हमे आज़ादी, पर क़त्ल-इ-आम सा क्यूँ है,
जीती हमने बाजियां, दिल परेशान सा क्यूँ है,
लोग गुम-सुम चुप-चाप है, अंदर घमासान सा क्यूँ है,
आज एक शक्श मुझसा, परेशान सा क्यूँ है,
रात जश्न-इ-आज़ादी का, मानते फिरें इस कदर,
सोचा किये कल सुबह सुहानी होगी,
रोशन होंगे नए चिराग, फिर नयी कहानी होगी,
पर सुबह पहले सी थी, एक नयी मुस्कान लिए,
रोशन हुआ दिल में चिराग, फिर नयी पहचान लिए,
कुछ कर-गुजरने की चाह ने फिर मुझे झकझोर दिया,
रोशन फिर एक नए चिराग ने, एक नया उपहार दिया,
आज गुलामी की जंजीरों से फिर मैं आज़ाद हुआ,
आज पुरानी ज़िन्दगी में फिर नया परवान चढ़ा,
ठान लिया मन में, फिर कुछ कर दिखाना है,
जश्न-इ-आज़ादी का दीप, मुझको फिर जलना है,
जो खो गया कहीं राहों में, खो दी जिसने पहचान कहीं,
उस भारत भूमि को, फिर से मान दिलाना है,
जश्न-इ-आज़ादी का फिर से दीप जलना है...

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