लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Tuesday, August 24, 2010
आज सुबह जा कर मयखाने...
आज सुबह जा कर मयखाने, मैंने पैमाना तोड़ दिया, मिलते थे जहाँ जाम से जाम, वो मयखाना छोड़ दिया, सोचा किये, अब ना पियेंगे इस पैमाने के बाद, पर साकी ने जो जाम दिया, फिर मयखाना जोड़ दिया...
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