Friday, February 3, 2012

गुज़रा उन गलियों से...

गुज़रा, आज उन गलियों से, जहाँ, तेरी कुछ यादें अब भी बाकी थी,
एक अजब सी मुस्कान थी तनहा चेहरे पर, क्यूँ धुंधली यादें जागी थी,
दूरियां दो दिलों में बढ़ गयी,
फिर क्यूँ वो मीठी यादें जागी थी,
गुज़रा उन गलियों से, जहाँ, तेरी कुछ यादें बाकी थी...

शाम का खुशनुमा नज़ारा, था सिमटा धूप में,
वो बाग़, वो कलियाँ, थी खिली वो धूप में,
शाम गुजरी, गुज़र गया कल, हाँथ जैसे रेत सा,
आह बिखरी, अश्क गिरे, फिसल गए सब रेत सा,
दूरियां यूँ बढ़ गयी, क्यूँ गुजरी यादें बाकी थी,
गुज़रा उन गलियों से, जहाँ तेरी मुस्कान बाकी थी...

हर पल तेरी आरज़ू है...

क्यूँ हर पल तेरी जुत्सुजू है,
क्यूँ हर पल तेरी आरज़ू है,
क्यूँ नज़रें बस तुझे ही खोजती है,
क्यूँ बस तेरी ही गुफ्तुगू है...
तेरी नज़रों का तवास्सुर यूँ छाया, कि खोने लगा मैं कहीं,
भीड़ में चलता रहा, रहा तनहा मैं कहीं,
बस दिल ही दिल, तेरी गुफ्तुगू यूँ चलती रही,
बस दिल ही दिल, यह आरज़ू पलती रही,
राह में जाने कितने हसीन नज़ारें थे, फिर क्यूँ यह नज़रें बस तुझे ही खोजती रही,
क्यूँ हर पल तेरी जुत्सुजू चलती रही,
क्यूँ यह आरज़ू पलती रही,
एक नज़र देख, जी भर लेता मैं,
मुस्कुरातें वो होंठ, ज़िन्दगी सजा लेता मैं,
क्यूँ यूँ तनहा सी जुत्सुजू है,
क्यूँ हर पल तेरी आरज़ू है...

कुछ तो असर है...

कुछ तो असर है उन आँखों का, जो तनहा होने नहीं देती,
इस भीड़ के बीच भी अकेला होने नहीं देती,
कभी मुस्कराहट खेलती होंठों पर, तो चेहरे पर रंगत सी कर देती है,
तो कभी भीड़ में तनहा होते ही, तेरी यादों में रुसवा कर देती है,
मैं सोचता हु, क्यूँ मुस्कराहट ज़िन्दगी सी भर देती है,
और न होकर, चेहरों को फीका कर देती है,
कुछ तो असर है उन आँखों का, जो तनहा होने नहीं देती,
इस भीड़ के बीच भी खोने नहीं देती...