Friday, February 3, 2012

गुज़रा उन गलियों से...

गुज़रा, आज उन गलियों से, जहाँ, तेरी कुछ यादें अब भी बाकी थी,
एक अजब सी मुस्कान थी तनहा चेहरे पर, क्यूँ धुंधली यादें जागी थी,
दूरियां दो दिलों में बढ़ गयी,
फिर क्यूँ वो मीठी यादें जागी थी,
गुज़रा उन गलियों से, जहाँ, तेरी कुछ यादें बाकी थी...

शाम का खुशनुमा नज़ारा, था सिमटा धूप में,
वो बाग़, वो कलियाँ, थी खिली वो धूप में,
शाम गुजरी, गुज़र गया कल, हाँथ जैसे रेत सा,
आह बिखरी, अश्क गिरे, फिसल गए सब रेत सा,
दूरियां यूँ बढ़ गयी, क्यूँ गुजरी यादें बाकी थी,
गुज़रा उन गलियों से, जहाँ तेरी मुस्कान बाकी थी...

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