लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Friday, January 7, 2011
एक छोटा सा सैलाब उठा...
एक छोटा सा सैलाब उठा और मुझको यूँ झकझोर गया, यादों का फिर मेरा दामन भीगा, मुझको रोता छोड़ गया, रोज़ तरसती थी जो आँखे, यार मेरे दीदार को, एक रोज़ सुबह उठ कर तुने, खुद से रिश्ता तोड़ दिया...
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