कल, जो उठा लाया था रेत, सागर किनारे से,
वो आज भी सूखी पड़ी है लहरों के इंतज़ार में,
कुछ मोती से पत्थर चुन लाया था, जाने किस उलझे ख़्याल में,
वो आज भी बेजान से पड़े है, मेरे हांथों की छुअन के इंतज़ार में |
वो आज भी सूखी पड़ी है लहरों के इंतज़ार में,
कुछ मोती से पत्थर चुन लाया था, जाने किस उलझे ख़्याल में,
वो आज भी बेजान से पड़े है, मेरे हांथों की छुअन के इंतज़ार में |
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