मेरा, कोई नाम नहीं, पहचान नहीं,
एक गीत हूँ जाना-पहचाना सा, जिसका कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं,
हूँ लफ़्ज़ों में उलझा सुलझा सा, कागज़ पर बिखरा-छितरा सा,
जिसका कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं,
मेरा, कोई नाम नहीं, पहचान नहीं |
एक गीत हूँ जाना-पहचाना सा, जिसका कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं,
हूँ लफ़्ज़ों में उलझा सुलझा सा, कागज़ पर बिखरा-छितरा सा,
जिसका कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं,
मेरा, कोई नाम नहीं, पहचान नहीं |
सब बन्दर बाट के खेलों में,
कभी मंदिर में, कभी रेलों में,
तस्वीरों सी पहचान रही,
कोई नाम नहीं, निशाँ नहीं,
एक गीत हूँ जाना-पहचाना सा, जिसका कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं,
मेरा, कोई नाम नहीं, पहचान नहीं ||
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