Thursday, November 28, 2013

लिख रहा हूँ...

एक शहर लिख रहा हूँ, एक गाँव लिख रहा हूँ,
पीपल की पत्तियों की छाओं लिख रहा हूँ,
भीड़ में गुम होता हुआ एक पाँव लिख रहा हूँ,
एक शहर लिख रहा हूँ, एक गाँव लिख रहा हूँ ।

लोगों की अंधी चाल, के ख्वाब लिख रहा हूँ,
कुछ उलझे-उलझे से जवाब लिख रहा हूँ,
भूला-बिसरा एक नाम लिख रहा हूँ,
भीड़ में गुम होता हुआ एक पाँव लिख रहा हूँ,
पीपल की पत्तियों की छाओं लिख रहा हूँ,
एक शहर लिख रहा हूँ, एक गाँव लिख रहा हूँ ॥

Monday, November 25, 2013

नक़ल-अकल...

गहन समस्या जान के, बोल बचन बतलाये,
चोरी हुआ जो सौंदर्य-चरित, गलत हाँथों में पड़ जाए,
कोई, बाल ज्यूँ ही बनाये, एक से कपड़े भी सिलवाये,
गहन समस्या जान के, बोल बचन बतलाये ।

दो कुंवारी बालाए, एक-एक मुस्काये,
एक कुंवारी पूर्ण सुंदरी, दूजी नक़ल-अकल किये जाए,
अतः वीणा पहली की किन्तु दर्द भी कैसे बतलाये,
दूजी भी जो करे नक़ल, अकल पर बल पड़ जाए,
देख विरह पहली की अभिनव, कलम, रगड़-रगड़ चलाये,
गहन समस्या मान के, बोल बचन बतलाये,
रहो सुखी अपने तन-भीतर, नक़ल न मोल बढ़ाये,
नक़ल का रंग चढ़ा जो सजनी, अकल पर जंग लगाये,
रहो पथिक, दुनिआ से अलग, तो ज्यों मान बढ़ाये,
गहन समस्या जान के, बोल बचन बतलाये ॥

जैसी जिसकी चाकरी, तैसो चढ़ियों मांड,
नक़ल-नक़ल में छोकरी, अकल भी चढ़ जाए टांड़,
दूजी की जो नक़ल करे तो खुद का करे अमान,
रूप-सरूप परिपूर्ण सुंदरी, त्यों, नक़ल को रख दे टांड ॥।

रहो सुखी अपने तन-भीतर, नक़ल न मोल बढ़ाये,
नक़ल का रंग चढ़ा जो सजनी, अकल पर जंग लगाये,
रहो पथिक, दुनिआ से अलग, तो ज्यों मान बढ़ाये,
गहन समस्या जान के, बोल बचन बतलाये ॥॥

Wednesday, November 13, 2013

ज़माना...

जलता तो ज़माना भी है मुझसे,
तेरी क्या मैं सिर्फ़ बात करूँ,
मरता तो ज़माना भी है मुझ पे,
तेरी क्या मैं सिर्फ बात कहूं,
जलती है औरों की हसरत,
तेरी क्या मैं सौगात कहूं,
जलता तो ज़माना भी है मुझसे,
तेरी क्या मैं सिर्फ़ बात करूँ ।

सीखा है...

जोड़-तोड़ कर, तोड़-जोड़ कर,
मैंने रहना सीखा है,
मोड़-ओढ़ कर, तोड़-मोड़ कर,
मैंने बहना सीखा है,
मैं हवा नहीं, हूँ पत्थर सा,
खुद से ये कहना सीखा है,
जोड़-तोड़ कर, तोड़-जोड़ कर,
मैंने रहना सीखा है ।

चल-चल कर, मीलों मल कर,
छालों में रहना सीखा है,
लगन-लगन में, देख अगन को,
जलते रहना सीखा है,
दूजों की मुस्काई खुशियों में,
खुश रहना सीखा है,
मैं हवा नहीं, हूँ पत्थर सा,
खुद से ये कहना सीखा है,
जोड़-तोड़ कर, तोड़-जोड़ कर,
मैंने बहना सीखा है ॥