लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Monday, October 4, 2010
नज़र-इ-करम इतना करो...
नज़र-इ-करम इतना करो, हर राह गुलज़ार हो मेरी,
राह में गिरने वाला हर फूल, भीगा हो दुआ में तेरी,
मैं न चाहूं धन-दोलत, राह में बिखरें मेरी,
मुझको तो बस होसला हो, हर राह में दुओं की तेरी...
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