लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Thursday, October 21, 2010
याद आती नहीं उनको...
याद आती नहीं उनको मेरी, कोई गम नहीं, याद करते है कितना, उनको कोई भरम नहीं, अब तो हाल-इ-दिल पूछना भी, न-मुनासिब समझते है वो, लगता है जैसे, उनको अपना कोई गम नहीं...
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