लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Friday, October 22, 2010
सर्द होने लगी है रातें...
फिज़ाओ की रंगत बदलने लगी है, दिशाओ की रंगत बदलने लगी है, सर्द होने लगी है रातें, हवाओ की रंगत बदलने लगी है, तेज़ हवाओ का आलम देखो, सर्द होने लगी है रातें, जहाँ कल तक चला करते थे घरों में पंखे, वहां रजैया तन ने लगी है...
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