Wednesday, May 22, 2013

गुल...

गुल ने गुलशन से गुल्फ़ाम भेजा है,
कुछ लोगों ने हमें ख़त में यह पैगाम भेजा है,
मत करो प्यार उनको इतना,
जिन्होंने, ख़त में किसी और का नाम भेजा है ।

हुस्न-ए-तारीफ़ की तमाम-ए-उम्र,
पर पलट कर कुछ जवाब न मिला।
दरख्ते भी सूख गयी खूटे की,
पर तू न मिला, सब "आम" मिला ॥

बड़ी बेमानगी से देखते है मुड़-मुड़ के,
और, हम यारों से पूछते फिरते है खुद के चेहरे का हाल ।

इतना भी न गौर किया मेरे होने न होने का,
तूने दूजे के आते ही मुझे दरकिनार कर दिया ।

Friday, May 10, 2013

अहिस्ता-अहिस्ता...

जानू न क्या रिश्ता है यह,
बस अजब एहसास है,
लाख दूरियों के बाद भी,
नज़र, आता तू पास है,
मिल-मिल कर कर भी नहीं मिटती,
जाने कैसी प्यास है,
जानू न क्या रिश्ता है यह,
बस अजब एहसास है ।

ये, दर्द भरी रातें क्या गुज़री,
हम तो कल के मुरीद हो गए ।
जीने की चाह में, पल-पल मरते रहे,
और कल के सपनों में शहीद हो गए ॥

मुद्दत से जागे है, नींद कहाँ आती है,
अब तो तारे भी हमें, हमराही नज़र लगते है ।

शौक-ए-शराब गिला करते तो क्या बात होती,
हर आरज़ू मयखाने में बहा करती ।

अहिस्ता-अहिस्ता हर शौक दफ़न होने लगा,
ज़िन्दगी की तलाश में । 

Thursday, May 9, 2013

हालात-ए-दिल...

कुछ दिन जी लिए थे बेपरवाह यूँ ही,
आज जागा हूँ तो सोचता हूँ जीना सीखू ।

बहुत जिए दूजों की ख़ातिर,
अब खुदगर्ज़ी को जी चाहता है,
कोई चाहे कह ले कमज़र्फ,
ज़ेब हो जीने को जी चाहता है ।

तिश्नगी की ख्वाहिश लिए परवाने कहाँ चलते है,
ये तो वो कमज़र्फ है जो अफ़साने बने फिरते है,
मगरूर हो शमा के संग पिघलते है,
तिश्नगी की ख्वाहिश लिए परवाने कहाँ चलते है ।

मुद्दतें लाख़ छुपाये फिरते है हालात-ए-दिल,
होती कैसे है उनको ख़बर, यह मालूम नहीं ।

Monday, May 6, 2013

नुमाइश...

हसरतों की नुमाइश, अब और नहीं,
लफ़्ज़ों की शिकायत, अब और नहीं,
थक गया हूँ खुद को निचोड़ कर परोसते-परोसते,
अब, दिल की नुमाइश, अब और नहीं ।

काश! पत्थर सा होता मैं भी,
यूँ पल-पल न रोता मैं भी,
हर पल खुश होता मैं भी,
कम-से-कम तनहा न होता मैं भी,
काश! पत्थर सा होता मैं भी,
पर अब हसरतों की नुमाइश, अब और नहीं,
लफ़्ज़ों की शिकायत, अब और नहीं,
थक गया हूँ खुद को निचोड़ परोसते-परोसते,
अब सूखे दिल में गुंजाईश, अब और नहीं ॥

जाने किस वास्ते...



















बेचैन थी रात, जाने किस वास्ते,
उलझे रहे हालात, जाने किस वास्ते,
कहा तो वही उसने, जो सुनना मैंने न चाहा था,
फिर क्यूँ न उतरी बात, जाने किस वास्ते,
बेचैन थी रात, जाने किस वास्ते ।

दर्द उठता रहा सारी रात, जाने की वास्ते,
पिघली अश्कों की बरसात, जाने किस वास्ते,
सुना तो मैंने वही, जो सहना मैंने न चाहा था,
फिर क्यूँ बिखरी रात, जाने किस वास्ते,
बेचैन थी रात, जाने किस वास्ते ॥

उलझा-उलझा बैठा हूँ, जाने किस वास्ते,
आँखें भी बरसात लिए बैठी है, जाने किस वास्ते,
कह दिया उसने वही, जो जी को समझ न आता था,
फिर क्यूँ तकिये पर हो गयी बरसात, जाने किस वास्ते,
क्यूँ बिखरी थी रात, जाने किस वास्ते,
बेचैन थी रात, जाने किस वास्ते ॥।

Thursday, May 2, 2013

ढ़लती उम्र...

घिसने लगी है उम्र, एड़ियों के जैसे,
बाल कुछ सुर्ख़ हो पकने लगे,
ढ़लती उम्र पर ढ़लती काया में,
कुछ बीते साल जुड़ने लगे,
गहरी होने लगी है आँखें, रंग ज़ेब पड़ने लगे,
और कहने को, उम्र यूँ बढ़ने लगी,
घिसने लगी है उम्र, एड़ियों के जैसे,
और, बाल कुछ सुर्ख़ हो पकने लगे,
कलम, घिसने लगा हूँ ज्यादा,
लफ्ज़ कुछ कम पड़ने लगे,
गुज़रते सालों में उम्र को ले कुड़ने लगे,
ढ़लती उम्र पर ढ़लती काया में,
कुछ बीते साल जुड़ने लगे,
घिसने लगी है उम्र, एड़ियों के जैसे,
और, बाल कुछ सुर्ख़ हो पकने लगे ।