कुछ लोगों ने हमें ख़त में यह पैगाम भेजा है,
मत करो प्यार उनको इतना,
जिन्होंने, ख़त में किसी और का नाम भेजा है ।
हुस्न-ए-तारीफ़ की तमाम-ए-उम्र,
पर पलट कर कुछ जवाब न मिला।
दरख्ते भी सूख गयी खूटे की,
पर तू न मिला, सब "आम" मिला ॥
बड़ी बेमानगी से देखते है मुड़-मुड़ के,
और, हम यारों से पूछते फिरते है खुद के चेहरे का हाल ।
तूने दूजे के आते ही मुझे दरकिनार कर दिया ।
