Friday, May 10, 2013

अहिस्ता-अहिस्ता...

जानू न क्या रिश्ता है यह,
बस अजब एहसास है,
लाख दूरियों के बाद भी,
नज़र, आता तू पास है,
मिल-मिल कर कर भी नहीं मिटती,
जाने कैसी प्यास है,
जानू न क्या रिश्ता है यह,
बस अजब एहसास है ।

ये, दर्द भरी रातें क्या गुज़री,
हम तो कल के मुरीद हो गए ।
जीने की चाह में, पल-पल मरते रहे,
और कल के सपनों में शहीद हो गए ॥

मुद्दत से जागे है, नींद कहाँ आती है,
अब तो तारे भी हमें, हमराही नज़र लगते है ।

शौक-ए-शराब गिला करते तो क्या बात होती,
हर आरज़ू मयखाने में बहा करती ।

अहिस्ता-अहिस्ता हर शौक दफ़न होने लगा,
ज़िन्दगी की तलाश में । 

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