आज जागा हूँ तो सोचता हूँ जीना सीखू ।
अब खुदगर्ज़ी को जी चाहता है,
कोई चाहे कह ले कमज़र्फ,
ज़ेब हो जीने को जी चाहता है ।
तिश्नगी की ख्वाहिश लिए परवाने कहाँ चलते है,
मगरूर हो शमा के संग पिघलते है,
तिश्नगी की ख्वाहिश लिए परवाने कहाँ चलते है ।
होती कैसे है उनको ख़बर, यह मालूम नहीं ।
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