वक़्त के थपेड़ों में ढल गया था मैं,
दौड़ती-भागती ज़िन्दगी में गल गया था मैं,
छोड़ आया था बचपन की मासूमियत कहीं,
ज़िन्दगी से लड़ते लड़ते बूढ़ा पड़ गया था मैं |
मासूमियत कब शैतानियत में बदल गयी,
हैवानियत कब हैरानियों में मचल गयी,
अन्दर, मैं ही था ज़िंदा कहीं.
फिर क्यूँ शक्शियत बुढ़ापे में बदल गयी,
वक़्त, आज क्यूँ कल जैसा न था,
"मैं" मैं था पर वैसा न था,
शायद, वक़्त के थपेड़ों में ढल गया था मैं,
दौड़ती-भागती ज़िन्दगी में गल गया था मैं,
वहां, छोड़ आया था बचपन की मासूमियत कहीं,
ज़िन्दगी से लड़ते-लड़ते बूढ़ा पड़ गया था मैं ||
दौड़ती-भागती ज़िन्दगी में गल गया था मैं,
छोड़ आया था बचपन की मासूमियत कहीं,
ज़िन्दगी से लड़ते लड़ते बूढ़ा पड़ गया था मैं |
मासूमियत कब शैतानियत में बदल गयी,
हैवानियत कब हैरानियों में मचल गयी,
अन्दर, मैं ही था ज़िंदा कहीं.
फिर क्यूँ शक्शियत बुढ़ापे में बदल गयी,
वक़्त, आज क्यूँ कल जैसा न था,
"मैं" मैं था पर वैसा न था,
शायद, वक़्त के थपेड़ों में ढल गया था मैं,
दौड़ती-भागती ज़िन्दगी में गल गया था मैं,
वहां, छोड़ आया था बचपन की मासूमियत कहीं,
ज़िन्दगी से लड़ते-लड़ते बूढ़ा पड़ गया था मैं ||
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