Wednesday, August 8, 2012

जाने किस गम की सजा...

चुप बैठे है, जिए जा रहे है,
जाने क्यूँ गम के घूट, पिए जा रहे है,
तन्हाई काटने लगी है अब तो,
फिर भी अकेले चले जा रहे है,
चुप बैठे है, जिए जा रहे है,
जाने किस गम की सजा दिए जा रहे है |

बेचैनी बढ़ने लगी है,
गढ़ने लगी है एक दाएरा,
जो खालीपन को नासूर सा करने लगा है,
दिल भी रह रह कर, जलने लगा है, गलने लगा है,
पर, फिर भी चुप बैठे है, जिए जा रहे है,
जाने किस गम की सजा दिए जा रहे है ||

दर्द की दरकार को अनसुना सा कर,
जो तुम्हारे भी दिल में करती है उथल-पुथल,
दिल की ज़मीनों पर सरहदें खींचे जा रहे है,
जाने किस गम की सजा दिए जा रहे है,
चुप बैठे है, जिए जा रहे है,
जाने क्यूँ गम के घूट, पिए जा रहे है |||

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