Tuesday, August 21, 2012

गर न होते ग़ालिब...

गर न होते ग़ालिब, तो लफ़्ज़ों की बरसात न होती,
लफ्ज़, लफ्ज़ ही रहते, शायरी की सौगात न होती,
हर आशिक का फ़साना न बयान होता हाल-इ-दिल मुझ सा,
मुझे न मुफ़लिस शायर कहते और न इनायतों की सौगात होती,
गर न होते ग़ालिब तो नज़्मों की बरसात न होती |

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