लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Tuesday, August 21, 2012
गर न होते ग़ालिब...
गर न होते ग़ालिब, तो लफ़्ज़ों की बरसात न होती,
लफ्ज़, लफ्ज़ ही रहते, शायरी की सौगात न होती, हर आशिक का फ़साना न बयान होता हाल-इ-दिल मुझ सा, मुझे न मुफ़लिस शायर कहते और न इनायतों की सौगात होती, गर न होते ग़ालिब तो नज़्मों की बरसात न होती |
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