लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Sunday, September 19, 2010
लबों पर आज उनका नाम आ गया...
लबों पर आज उनका नाम आ गया, प्यासे के सामने जैसे जाम आ गया, डोले कदम तो गिरे उनकी बाहों में, आज ये नशा ही हमारे काम आ गया...
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