लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Friday, September 24, 2010
दिल ही नदारद है, मेरे ही वास्ते...
तड़पते थे मेरी एक आवाज़ को सुनने के वास्ते, रात भर जागा करते थे, याद को संभाले मेरे वास्ते, अब जो दिल लगा कर सुनते चाहते है, आहटे उनके दिलो की, दिल ही नदारद है, मेरे ही वास्ते...
No comments:
Post a Comment