Sunday, April 17, 2011

कुछ चेहरे अपने हो कर भी, अनजान से क्यूँ लगते है...

कुछ चेहरे हमे बे-शकल, बे-जान से क्यूँ लगते है,
कुछ चेहरे अपने हो कर भी, अनजान से क्यूँ लगते है,
बहुत जुगत कर संभाला था, जिन रिश्तों को,
आज वो रिश्ते हममे, अनजान से क्यूँ लगते है...
बरसों बैठे रहे इस उम्मीद में, कि कभी तो हाल-इ-दिल इकरार करेंगे,
बरसों सुनते रहे इस उम्मीद में, कि कभी तो गुनाह माफ़ कर हमसे प्यार करेंगे,
पर वो न बदले, बदली मेरी दुनिया सारी,
रातें जो हसीन थी कभी, बोझिल हो गयी सारी,
बहुत जुगत कर संभाला था, जिन अनमोल रिश्तों को,
आज वो रिश्ते हममे, अनजान से क्यूँ लगते है,
कुछ चेहरे हमे, बे-शकल, बे-जान से क्यूँ लगते है,
कुछ चेहरे अपने हो कर भी, अनजान से क्यूँ लगते है...

4 comments:

  1. लगते तो हैं ...शायद अब कहीं भी अपनापन नहीं रहा इसलिए ...अच्छी प्रस्तुति

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  2. kuchh chehre apne lagte yahi badi bat hai bahut sundar ahsas aur unki abhivyakti badhai

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  3. @Sanjeet Saroop Ji: शब्द तो अभिव्यक्ति का एक जरिया मात्र है, मैंने सिर्फ सबके दिलों को छूने का प्रयास मात्र किया है! आपके स्नेह शब्दों के लिए सधन्यवाद!!

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  4. @Sunil Kumar Ji: लोगो की इस बढ़ती भीड़ में, कुछ धुंधले चेहरे कभी-कभी अपनेपन का एहसास करा जाते है, उन्ही धूमिल होते चेहरे की लिए एक तुच्छ प्रयास मात्र किया है! आपके स्नेह शब्दों के लिए सधन्यावाद!!

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