ढोंग पर चलते रिश्तों से, आज मैंने दर-किनार कर लिया,
चाहता रहा जिन्हें उम्र भर, उन्हें, चाहत से पार कर दिया,
सोचता था, जो झूटी उम्मीद थी, दो दिलों के दरमियाँ,
आज न जाने क्यूँ, उसे, दिल की सरहद से पार कर दिया,
चाहता रहा जिन्हें उम्र भर, उन्हें, चाहत से पार कर दिया,
ढोंग पर चलते रिश्तों से, आज, मैंने दर-किनार कर लिया...
क्यूँ भागता रहा उन झूटे वादों के पीछे, जिन पर दिल को कभी गुमां न था,
क्यूँ चाहता रहा उन रिश्तों को, जिनका कोई मुक़ाम न था,
एक झूटी आस के पीछे, गुज़ार दी हमने अपनी ज़िन्दगी सारी,
आज न जाने क्यूँ, उसे, दिल की सरहद से पार कर दिया,
चाहता रहा जिन्हें उम्र भर, उन्हें, चाहत से पार कर दिया,
ढोंग पर चलते रिश्तों से, आज मैंने दर-किनार कर लिया...
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