दिल न लगाओ, बड़ा दर्द होता है,
यादों के कई घाव का मर्ज़ होता है,
दर्द नासूर बन जाता है, कुरेदते-कुरेदते,
ज़ालिम यही प्यार का क़र्ज़ होता है...
कोई आँखों से गुज़र गया, ख्वाब की तरह,
यादों में सवर गया, सब्ज़-बाग़ की तरह,
था मेरा अपना कोई, एक नए एहसास की तरह,
सुरों की धुन पर सजे, साज़ की तरह,
कोई आँखों से गुज़र गया, ख्वाब की तरह,
यादों में सवर गया, सब्ज़-बाग़ की तरह,
चाहा बहुत था उस अजनबी को, अनचाही रात की तरह,
ख़्वाबों में खूब बातें की की थी, मीठी याद की तरह,
मेरी यादों में सवर गया कोई, सब्ज़-बाग़ की तरह,
कोई आँखों से गुज़र गया, अनजाने ख्वाब की तरह...
अब दिन की मत पूछो, रात की पूछो,
दिल पर गुज़रे खंजरों की सौगात की पूछो,
एक पल में ही दुनिया बदल गयी सारी,
दर्द में तड़पते हर एक अलफ़ाज़ से पूछो,
अब दिन की मत पूछो, रात की पूछो,
दिल पर गुज़रे खंजरों की सौगात की पूछो...
हम रोये बड़े अरमान से, वो हमसे दूर जा रहे थे,
दूर जाते-जाते भी दिल के पास आ रहे थे,
ख़ुशी इस बात की थी, उन्हें हमसे अच्छा हमसफ़र मिल गया,
और वो न चाहते हुए भी, हमारी मोहोब्बत का जनाज़ा लिए जा रहे थे,
क्या कह, रोक लेते उन्हें, हम तो इस काबिल भी न थे,
क्या कह, टोक देते उन्हें, वो तो खुद मायूस पहले से थे,
ख़ुशी इस बात की थी, उन्हें हमसे अच्छा हमसफ़र मिल गया,
और वो न चाहते हुए भी, हमारी मोहोब्बत का जनाज़ा लिए जा रहे थे,
हम रोये बड़े अरमान से, वो हमसे दूर जा रहे थे,
दूर जाते-जाते भी न जाने क्यूँ दिल के पास आ रहे थे...
बदल जाते है लोग पर यादें क्यूँ नहीं बदलती,
बदल जाती है बातें पर रातें क्यूँ नहीं बदलती,
बदलना क्यूँ? चाहत बदल गयी मेरी,
बदलना क्यूँ? आदत बदल गयी तेरी,
दर्द बाद-से-बदतर, बेज़ार हो रहा है,
क्यूँ तनहा सा हूँ और यह पागलपन हद्द से पार हो रहा है,
क्यूँ, बदल गयी बातें सारी, फिर रातें क्यूँ नहीं बदलती,
भीगा तकिया सिरहाने, फिर यादें क्यूँ नहीं पिघलती,
बदल जाते है लोग फिर यादें क्यूँ नहीं बदलती....
दर्द हुआ, धीरे से दिल में खंजर उतर गया,
चोट जिस्म पर न थी, घाव दिल में कर गया,
तनहा मैं खड़ा इस किनारे, दर्द में गुमसुम, अनजान,
लफ्ज़ उसके, दिल पर मेरे, क़त्ल-इ-आम सा कर गया,
मैं पिसने न देना चाहता था, उसको या खुदको,
तो खुद ही राहों से मुड़ गया,
दर्द हुआ, धीरे से दिल में खंजर उतर गया...
बहुत कमज़ोर हूँ अन्दर से, रिश्तों में टूट जाता हूँ,
दर्द किसी का सेहन नहीं होता, शायद, हद्द से गुज़र जाता हूँ,
चुपके से अश्क बहा कर, झूठी हँसी दिखता हूँ,
बस यूँ ही मुस्कुराता हूँ,
बहुत कमज़ोर हूँ अन्दर से, रिश्तों में टूट जाता हूँ,
दर्द सेहन नहीं होता, शायद, हद्द से गुज़र जाता हूँ...
वक़्त, पहले ही थम गया था, तेरे मेरे दरमियान,
बस बीच में एक दीवार खड़ी होना बाकी थी,
आज, मेरी ख्वाहिशों का जनाज़ा निकल गया,
फिर भी तेरी हँसी को तरसती आँखें है,
हाँ! तोड़ दिया रिश्ता, तेरी ख़ुशी की खातिर,
हाँ! तोड़ दिया खुद को, तेरी हँसी की खातिर,
वो वक़्त तो पहले ही थम गया था, तेरे मेरे दरमियान,
बस यूँ बीच में दीवार खड़ी होना बाकी थी...
लिख जो लेता मैं अगर, तो क्या लिख लेता,
कह जो देता मैं अगर, तो क्या कह देता,
तुम तो पहले ही ग़ैर थे, इन हवाओं की तरह,
फिर भी पसंद थे, पीपल की छाव की तरह,
दिल मैंने जो लगाया, भरा आहों की तरह,
रह गया मैं अकेला, तनहा राहों की तरह,
लिख जो लेता मैं अगर, तो क्या लिख लेता,
कह जो देता मैं अगर, तो क्या कह देता...