Friday, September 30, 2011

अनचाहे पन्नो से...

दिल न लगाओ, बड़ा दर्द होता है,
यादों के कई घाव का मर्ज़ होता है,
दर्द नासूर बन जाता है, कुरेदते-कुरेदते,
ज़ालिम यही प्यार का क़र्ज़ होता है...

कोई आँखों से गुज़र गया, ख्वाब की तरह,
यादों में सवर गया, सब्ज़-बाग़ की तरह,
था मेरा अपना कोई, एक नए एहसास की तरह,
सुरों की धुन पर सजे, साज़ की तरह,
कोई आँखों से गुज़र गया, ख्वाब की तरह,
यादों में सवर गया, सब्ज़-बाग़ की तरह,
चाहा बहुत था उस अजनबी को, अनचाही रात की तरह,
ख़्वाबों में खूब बातें की की थी, मीठी याद की तरह,
मेरी यादों में सवर गया कोई, सब्ज़-बाग़ की तरह,
कोई आँखों से गुज़र गया, अनजाने ख्वाब की तरह...

अब दिन की मत पूछो, रात की पूछो,
दिल पर गुज़रे खंजरों की सौगात की पूछो,
एक पल में ही दुनिया बदल गयी सारी,
दर्द में तड़पते हर एक अलफ़ाज़ से पूछो,
अब दिन की मत पूछो, रात की पूछो,
दिल पर गुज़रे खंजरों की सौगात की पूछो...

हम रोये बड़े अरमान से, वो हमसे दूर जा रहे थे,
दूर जाते-जाते भी दिल के पास आ रहे थे,
ख़ुशी इस बात की थी, उन्हें हमसे अच्छा हमसफ़र मिल गया,
और वो न चाहते हुए भी, हमारी मोहोब्बत का जनाज़ा लिए जा रहे थे,
क्या कह, रोक लेते उन्हें, हम तो इस काबिल भी न थे,
क्या कह, टोक देते उन्हें, वो तो खुद मायूस पहले से थे,
ख़ुशी इस बात की थी, उन्हें हमसे अच्छा हमसफ़र मिल गया,
और वो न चाहते हुए भी, हमारी मोहोब्बत का जनाज़ा लिए जा रहे थे,
हम रोये बड़े अरमान से, वो हमसे दूर जा रहे थे,
दूर जाते-जाते भी न जाने क्यूँ दिल के पास आ रहे थे...

बदल जाते है लोग पर यादें क्यूँ नहीं बदलती,
बदल जाती है बातें पर रातें क्यूँ नहीं बदलती,
बदलना क्यूँ? चाहत बदल गयी मेरी,
बदलना क्यूँ? आदत बदल गयी तेरी,
दर्द बाद-से-बदतर, बेज़ार हो रहा है,
क्यूँ तनहा सा हूँ और यह पागलपन हद्द से पार हो रहा है,
क्यूँ, बदल गयी बातें सारी, फिर रातें क्यूँ नहीं बदलती,
भीगा तकिया सिरहाने, फिर यादें क्यूँ नहीं पिघलती,
बदल जाते है लोग फिर यादें क्यूँ नहीं बदलती....

दर्द हुआ, धीरे से दिल में खंजर उतर गया,
चोट जिस्म पर न थी, घाव दिल में कर गया,
तनहा मैं खड़ा इस किनारे, दर्द में गुमसुम, अनजान,
लफ्ज़ उसके, दिल पर मेरे, क़त्ल-इ-आम सा कर गया,
मैं पिसने न देना चाहता था, उसको या खुदको,
तो खुद ही राहों से मुड़ गया,
दर्द हुआ, धीरे से दिल में खंजर उतर गया...

बहुत कमज़ोर हूँ अन्दर से, रिश्तों में टूट जाता हूँ,
दर्द किसी का सेहन नहीं होता, शायद, हद्द से गुज़र जाता हूँ,
चुपके से अश्क बहा कर, झूठी हँसी दिखता हूँ,
बस यूँ ही मुस्कुराता हूँ,
बहुत कमज़ोर हूँ अन्दर से, रिश्तों में टूट जाता हूँ,
दर्द सेहन नहीं होता, शायद, हद्द से गुज़र जाता हूँ...

वक़्त, पहले ही थम गया था, तेरे मेरे दरमियान,
बस बीच में एक दीवार खड़ी होना बाकी थी,
आज, मेरी ख्वाहिशों का जनाज़ा निकल गया,
फिर भी तेरी हँसी को तरसती आँखें है,
हाँ! तोड़ दिया रिश्ता, तेरी ख़ुशी की खातिर,
हाँ! तोड़ दिया खुद को, तेरी हँसी की खातिर,
वो वक़्त तो पहले ही थम गया था, तेरे मेरे दरमियान,
बस यूँ बीच में दीवार खड़ी होना बाकी थी...

लिख जो लेता मैं अगर, तो क्या लिख लेता,
कह जो देता मैं अगर, तो क्या कह देता,
तुम तो पहले ही ग़ैर थे, इन हवाओं की तरह,
फिर भी पसंद थे, पीपल की छाव की तरह,
दिल मैंने जो लगाया, भरा आहों की तरह,
रह गया मैं अकेला, तनहा राहों की तरह,
लिख जो लेता मैं अगर, तो क्या लिख लेता,
कह जो देता मैं अगर, तो क्या कह देता...

Monday, September 26, 2011

हाल-इ-दिल मुजस्सल, होसला-इ-कलम...

तकलीफ़ होती है, जब दिल दर्द के समुन्दर में उतर जाए,
तकलीफ़ होती है, जब दिल में यादों के खंजर उतर जाए,
तकलीफ़ होती है, जब शमा से परवाना जुदा हो जाए,
तकलीफ़ होती है, जब नज़रों से दर्द का पैमाना गुज़र जाए...

कुछ बूँदें चेहरे पर असर कर जाती है,
दिल के खालीपन को चेहरे पर नज़र कर जाती है,
बूंदों का भीगापन, इतना अन्दर तक असर होगा,
कि दिल कि ख्वाहिशों का समुन्दर, चेहरे पर नज़र कर जाती है,
दिल के खालीपन को चेहरे पर नज़र कर जाती है,
कुछ बूँदें चेहरे पर नज़र कर जाती है...

आज फिर रोयेंगे बादल, मेरे बे-ज़ार दर्द पे,
आज फिर बहेंगे अश्क, प्यार के इस मर्ज़ पे,
दर्द दिल में यूँ भरेगा, प्यार के इस क़र्ज़ पे,
धीरे-धीरे क़त्ल होगा, प्यार की ही तर्ज़ पे...

शेर-दिल रोया नहीं करते, होसले यूँ खोया नहीं करते,
दर्द में तड़प जरूर जाते है पर दर्द से यूँ खुद को भिगोया नहीं करते,
दर्द जब नासूर सा बन चुभने लगे, दिल के कोने-कोनो में,
दर्द से तपाद जरूर जाते है, दर्द से यूँ खुद को भिगोया नहीं करते,
शेर-दिल रोया नहीं करते, होसले यूँ खोया नहीं करते....

Monday, September 12, 2011

दर्द होता है...

दर्द होता है, दिल के नासूरों को छुपा लेता हूँ,
रो कर अपना दामन भिगो लेता हूँ,
कमज़ोर मैं नहीं दिल कमज़ोर है, यह सोच कर नज़रें झुका लेता हूँ,
दर्द होता है, दिल के नासूरों को छुपा लेता हूँ,
कुरेद गया कोई, दिल के नासूरों को,
क़त्ल कर गया कोई, मेरी यादों को,
कमज़ोर मैं नहीं दिल कमज़ोर है, यह सोच कर नज़रें झुका लेता हूँ,
दर्द होता है, दिल के नासूरों को छुपा लेता हूँ,
हिम्मत नहीं है लड़ने की तो रो कर दामन भिगो लेता हूँ…

जला दिया...

जला दिया आज उन रिश्तों को, जो दिल को कभी अज़ीज़ थे,
दबा दिया उन यादों को, जो दिल के कभी करीब थे,
खुद की यादों का जनाज़ा निकाला, खुद बड़े ही शौक से,
कर दिया क़त्ल उन यादों का, जो दिल में कभी अज़ीज़ थी…

Wednesday, September 7, 2011

इस इश्क-मुश्क की खातिर...

जाने कितने शायर-यार हुए, जाने कितने बेकार हुए,
इस इश्क-मुश्क की खातिर, जाने कितने बीमार हुए,
हादसा यह तब हुआ, जब तुझसे आँखें चार हुई,
हादसा यह तब हुआ, जब ख़्वाबों की बरसात हुई,
हम भी फिर गए काम से, बन कर शायर-यार हुए,
जाने कितने शायर-यार हुए, जाने कितने बेकार हुए

हम जो, रो पाते अगर...

जाने कितने दरिया बन जाते अगर, हम जो, रो पाते अगर,
तनहा न छोड़ता कोई मुझको यूँ, न शायर यूँ बन जाता मगर,
दर्द का दुखड़ा न यूँ सुनाता तुझे, अपने दर्द से न यूँ बहलाता तुझे,
जाने कितने दरिया बन जाते अगर, हम जो, रो पाते अगर...

Tuesday, September 6, 2011

मैं आदिम हूँ या शैतान...

मैं आदिम हूँ या शैतान, मेरे लफ़्ज़ों से न ये जान,
दिखता हूँ इंसान, पर सोच बड़ी बद्जान,
पैसे और हवस की भूख, आँखे है बदनाम,
मैं आदिम हूँ या शैतान, मेरे लफ़्ज़ों से न ये जान…

Sunday, September 4, 2011

कुछ अनकही, कुछ अनसुनी...

क्यूँ घुटन सी...
क्यूँ घुटन सी होने लगती है, अरमानों का क़त्ल होते ही,
खूँ के छीटे बिखर जाते है, चेहरे पर आंसुओं की तरह,
क्यूँ बेबस सी लगने लगती है ज़िन्दगी, किसी के जाने से ही,
यादों के छीटे बिखर जाते है, आँखों में ख़्वाबों की तरह,
क्यूँ गम ही गम नज़र आने लगता है, टूटे वादों की तरह,
बीती यादों के चेहरे बिखर जाते है, अधूरी रातों की तरह,
क्यूँ घुटन सी होने लगती है, अरमानों का क़त्ल होते ही,
खूँ के छीटे बिखर जाते है, चेहरे पर आंसुओं की तरह…

सोचा था…
सोचा था, कुछ मीठी बात होगी, आँखों-आँखों में रात होगी,
पर तू न गुज़रा, तेरी रूह न गुजरी, मेरे अरमानों का जनाज़ा गुज़र गया,
दिल के होसलों का क़त्ल कर, मेरे लफ़्ज़ों को यतीम कर गया,
पर तू न गुज़रा, तेरी रूह न गुजरी, मेरे लफ़्ज़ों का जनाज़ा गुज़र गया…

दर्द होता है…
न सोचो इतना ज्यादा कि दर्द होता है,
न कुरेदो दिल के नासूरों को कि दर्द होता है,
घाव भर भी जाते, अगर इतना न चाहते हम किसी को,
वो मरहम की तरह न नज़र आते है कि दर्द होता है,
न कुरेदो दिल के नासूरों को कि दर्द होता है,
न सोचो इतना ज्यादा कि दर्द होता है…

Thursday, September 1, 2011

क्यूँ मर्ज़ सा लगने लगा है...

हर गुज़रता लम्हा, काटने लगा है अंदर से,
हर बहता कतरा, कचोटने लगा है अंदर से,
दर्द बढ़ता जा रहा है, बदलते नासूर की तरह,
क्यूँ मर्ज़ सा लगने लगा है अंदर से…
घड़ी का काँटा, पल-पल इतना भारी होगा, मैंने सोचा न था,
वक़्त का एक-एक पहर, ऐसे गुज़रेगा, मैंने सोचा न था,
क्यूँ दर्द बढ़ता जा रहा है, बदलते दिल में नासूर की तरह,
क्यूँ मर्ज़ सा लगने लगा है अंदर से…