लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Wednesday, September 7, 2011
हम जो, रो पाते अगर...
जाने कितने दरिया बन जाते अगर, हम जो, रो पाते अगर,
तनहा न छोड़ता कोई मुझको यूँ, न शायर यूँ बन जाता मगर,
दर्द का दुखड़ा न यूँ सुनाता तुझे, अपने दर्द से न यूँ बहलाता तुझे,
जाने कितने दरिया बन जाते अगर, हम जो, रो पाते अगर...
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