Tuesday, October 30, 2012

खुद को खोजन मैं चला...

खुद को खोजन मैं चला, खुद को कहीं न पाया,
जो खोजा खुदा को मैंने, अक्स नज़र मेरा आया,
प्रीत परायी कैसी यह, अब तक समझ न पाया,
जो खुद खुदा मुझ में है, तो क्या खोजन क्या पाया,
प्राण भरी जिवाह सुमरी, कटु वचन जब आया,
दूर खुदाई देख कर मन मेरा घबराया,
खुद को खोजन मैं चला, खुद को कहीं न पाया,
जो खोजा खुदा को मैंने, अक्स नज़र मेरा आया |

कोटि-कोटि हुआ धन्य मैं, ज्ञान समझ जब आया,
संग कवि जब बोल पड़ा, सब में खुदा समाया,
ज्ञात हुआ अमृत सा, मन-तृप्ति सा पाया,
प्रीत परायी कैसी यह, अब तक समझ न पाया,
फल, फूल, मोती सा, मोहित सबको पाया,
कण, कंकड़-पत्थर में, सब में नज़र वही आया,
खुद को खोजन मैं चला, खुद को कहीं न पाया,
जो खोजा खुदा को मैंने, अक्स नज़र मेरा आया ||

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