कोफ़्त होने लगी है खुद से,
नासूर सी गंध भी आती है,
जिस्म सड़ गया है मेरा,
या रूह सड़नी बाकी है?
कोहराम मचा है अन्दर,
कोतुहल भी जागी है,
गलने लगी है रूह,
और लपटे नज़र आती है,
कोफ़्त होने लगी है खुद से,
नासूर सी गंध आती है,
जिस्म सड़ गया है मेरा,
या रूह सड़नी बाकी है?
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