कैसी प्रीत यह जान परायी,
लफ़्ज़ों ने पहचान करायी,
बहुत लिखे वो लफ्ज़ सुनहरे,
कभी चेहरे, आँखें, लफ़्ज़ों के घेरे,
बहुतों की पहचान बताई,
खुद की तस्वीर कभी नज़र न आई,
कई बोले, भई! वाह क्या बात कही,
चेहरे पर पूरी कविता कह दी,
आँखों की कैसी सच्चाई, जो खुद हम को नज़र न आई,
पर तुमने कुछ लफ्ज़ तराशे, आँखों में चमक सी आई,
बहुतों की पहचान बताई,
खुद की तस्वीर कभी नज़र न आई,
कैसी प्रीत यह जान परायी,
लफ़्ज़ों ने पहचान करायी |
कोई बोले मेरे लिए लिख दो,
कोई बोले मेरे लिए कह दो,
जो भी दिखाई दे सच्चाई,
वो लफ़्ज़ों में नज़र आई...
पर, कोई तो मेरे लिए कह दे,
जो अब तक मुझको नज़र न आई,
कैसी प्रीत यह जान परायी,
लफ़्ज़ों ने पहचान करायी,
बहुतों की पहचान बताई,
पर, खुद की तस्वीर कभी नज़र न आई ||
लफ़्ज़ों ने पहचान करायी,
बहुत लिखे वो लफ्ज़ सुनहरे,
कभी चेहरे, आँखें, लफ़्ज़ों के घेरे,
बहुतों की पहचान बताई,
खुद की तस्वीर कभी नज़र न आई,
कई बोले, भई! वाह क्या बात कही,
चेहरे पर पूरी कविता कह दी,
आँखों की कैसी सच्चाई, जो खुद हम को नज़र न आई,
पर तुमने कुछ लफ्ज़ तराशे, आँखों में चमक सी आई,
बहुतों की पहचान बताई,
खुद की तस्वीर कभी नज़र न आई,
कैसी प्रीत यह जान परायी,
लफ़्ज़ों ने पहचान करायी |
कोई बोले मेरे लिए लिख दो,
कोई बोले मेरे लिए कह दो,
जो भी दिखाई दे सच्चाई,
वो लफ़्ज़ों में नज़र आई...
पर, कोई तो मेरे लिए कह दे,
जो अब तक मुझको नज़र न आई,
कैसी प्रीत यह जान परायी,
लफ़्ज़ों ने पहचान करायी,
बहुतों की पहचान बताई,
पर, खुद की तस्वीर कभी नज़र न आई ||
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