कौन हूँ मैं?
खुद का वजूद जानता ही नहीं,
जिंदा हूँ पर क्यूँ? कोई वजह मानता ही नहीं,
खुद के वजूद की तलाश में, जाने कितने आईने तोड़ दिया,
खुद को पाने की चाहत में, जाने कितने रिश्ते-नाते जोड़ लिए,
पर " मैं " न मिला, मेरी रूह न मिली,
कुछ लफ्ज़ मिले, गीली स्याही भी मिली,
कौन हूँ मैं?
यह जानता ही नहीं,
खुद के होने का वजूद जानता ही नहीं ।
एक तार सी ज़िन्दगी,
बे-दिल, बेज़ार सी ज़िन्दगी,
भीड़ में, आम में,
तनहा अकेला शाम में,
खुद का वजूद जानता ही नहीं,
जिंदा हूँ पर क्यूँ? कोई वजह मानता ही नहीं,
कौन हूँ मैं?
यह जानता ही नहीं ।।

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