Tuesday, June 25, 2013

हाल...

कोई बंधन नहीं, फिर भी एक डोर है,
कभी मैं खींचू, कभी खीचे तेरी ओर है,
प्यारा सा बंधन, बंधें अपनी ओर है,
कहने को "दोस्ती", जग समेटे अपनी ओर है ।

एक आस जगा तू अपने अन्दर, मंज़िल उससे बनाने की,
भव-नैया तू तर जाएगा, न छोड़ चाह उससे तू पाने की,
राह कठिन है अपितु, चाह जगा तू पाने की,
एक आस जगा तू अपने अन्दर, मंज़िल उससे बनाने की ।

तो, क्या फ़र्क पड़ता है मेरे लफ़्ज़ों के चोरी होने से,
मामला तो तब खड़ा हो जब जिंदा हूँ मैं ।

इतनी सी भी फुरसत नहीं उन्हें कि मेरा हाल ही पूछे,
उनसे अच्छे तो मेरे दुश्मन है, जो पल-पल की ख़बर रखते है ।

अब तो आस भी छोड़ बैठे है गलते-गलते,
मरीज़-ए-हाल-ए-ख़राब अब न पुछा कीजे ।

बहुत संग-दिल हो गए है मेरे अपने,
हाल पूछने पर भी सबब-ए-आलम खोजते है ।

काफ़िरों की जमात में तो कबसे शामिल है अभिनव,
कोई दोस्ती कर शुबा न करे ।

हम जैसे काफ़िरों को इश्क़ की शुबा नहीं,
ये तो वो गिला है जो आशिक़ों को मिलता है ।

Sunday, June 23, 2013

तन्हाई का तस्सवुर...

तन्हाई का तस्सवुर भी देखा,
रुलाई का मंज़र भी देखा,
पर कुछ न मिला तनहा यादों के सिवा ।
उलझे हालात भी देखे,
बिखरे जज़्बात भी देखे,
पर कुछ न मिला तनहा मंज़र के सिवा ।।

वो चले ही क्या जो किसी अंजाम तक न पहुंचे,
जाम वो उठाओ जो किसी के नाम तक पहुंचे ।

हालात-ए-सितम का आईना जब टूटा,
मैं ख़ाक में मिल गया,
उनकी रूह से सामना जब हुआ,
मैं होंठों को सिल गया,
कुछ कहना मुनासिब न लगा बदलते हालात पर,
मैं चुप रहा, और लफ़्ज़ों में घिर गया,
हालात-ए-सितम का आईना जब टूटा,
मैं ख़ाक में मिल गया ।

Saturday, June 22, 2013

फ़लसफ़ा...

कोफ़्त होने लगी थी खुद से, गंध भी उठती थी,
आज प्यार का आईना टूटा तो रूह को बुखार आ गया ।

नहीं रुकते आंसू मेरे जाने क्यूँ,
बहते रहते है जाने किस वास्ते ।

ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा बस इतना सा था अभिनव,
जो चाहा वो पाया नहीं, जो पाया वो चाहा नहीं ।


मंज़िलें उनको भी मिले जो दिन-ओ-चार रहे,
हम जैसे काफ़िरों को बस मय्यत मिला करती है ।

ता-उम्र मांगते रहे ऐ-खुदा,
आज, हाथों को बाँध मैंने आगे बढ़ना सीखा है ।


कहते है, मांग लो चाहे दुनिया नयी,
पर वो न मांगो जिसकी आस लिए जीते हो । 

अश्क़ उनके लिए गिरे जिन्हें आंसुओं की कदर न थी,
और मैं, रोता रहा ता-उम्र बेगैरतों के लिए । 

Tuesday, June 18, 2013

तेरे बिन...

















क्यूँ दिल नहीं लगता तेरे बिन,
क्यूँ याद सताती रहती है,
एक आस जुड़ी है साँसों से,
जो याद दिलाती रहती है,
एक नाम है धुंधला-धुंधला सा,
एक बात सुनाई देती है,
क्यूँ दिल नहीं लगता तेरे बिन,
क्यूँ याद सताती रहती है ।

Tuesday, June 11, 2013

तेरे-मेरे दरमियान...

कुछ तो है चल रहा तेरे-मेरे दरमियान,
जिसकी ख़बर तुमको भी है, जिसका पता मुझको भी है,
फिर क्यूँ नहीं समझता है ये दिल,
सब कुछ पता इसको भी है, हर ख़बर उसको भी है,
कुछ तो है चल रहा तेरे-मेरे दरमियान ।
बहुत कोशिशें करता हूँ तेरे पास आने की,
चाहतें नहीं है तुझसे दूर जाने की,
फिर क्यूँ नहीं समझते, हालात-ए-दिल मेरा,
जो हाल हुआ है, ढले शाम मेरा,
जिसकी ख़बर तुमको भी है, जिसका पता मुझको भी है,
फिर क्यूँ नहीं समझता है ये दिल,
कुछ तो है चल रहा तेरे-मेरे दरमियान ॥

Monday, June 10, 2013

बहुत...

बहुत कोशिशों से रोका है खुद को,
वर्ना, मैं तो बादल था उड़ता आवारा सा ।

बहुत पेश्तर चलती है सांसें तेरे न होने से,
तुझसे ऐसा जुडुगा, सोचा न था ।

Tuesday, June 4, 2013

एक रोज़ बताएँगे...

हाल-ए-दिल तुम्हे एक रोज़ बताएँगे,
क्या-क्या है सवाल-ए-दिल एक रोज़ बताएँगे,
उलझे रहते है खुद में यूँ ही,
खुद से निकले बाहर तो एक रोज़ बताएँगे,
हाल-ए-दिल तुम्हे एक रोज़ बताएँगे ।

उलझी सारी यारियां एक रोज़ दिखायेंगे,
कैसे हुए पराये लोग एक रोज़ मिलायेंगे,
दिल-ए-सवाल एक रोज़ सुनायेंगे,
खुद से निकले बाहर तो एक रोज़ बताएँगे,
हाल-ए-दिल तुम्हे एक रोज़ बताएँगे ॥ 

कलम न उठती एक रोज़ बताएँगे,
अन्दर, बातें है चलती एक रोज़ सुनायेंगे,
उलझा है मिजाज़ एक रोज़ खुद से मिलायेंगे,
खुद से निकले बाहर तो एक रोज़ बताएँगे,
हाल-ए-दिल तुम्हे एक रोज़ सुनायेंगे ||| 

और...

जानू न कैसे तेरे हर पल में शामिल हूँ,
यहाँ तो विराना नज़र आता है मुझे मेरे आस पास ।

इतनी बेताब नहीं थी "ज़िन्दगी" तुझसे मिलने से पहले,
चाहतें बढ़ती रहती है, हलकी-हलकी आहटों पर ।

बड़ा बेचैन हो "ज़िन्दगी" से मिला मैं,
साथ न हो तेरा तो डरता हूँ मैं ।

ख़्वाबों की नुमाइश कर यह जाना, 
कि, सुर्ख़ शब् की लालिमा रोज़ अच्छी नहीं ।

बड़ी दीवानगी सी होती है इश्क़ में यह जाना आज,
कि, तेरे न होने से दिल की धड़कन तक सुनाई नहीं देती ।

बड़ी बेबाकी से जीया करते थे हम,
और, इश्क़ हो गया ।