कोई बंधन नहीं, फिर भी एक डोर है,
कभी मैं खींचू, कभी खीचे तेरी ओर है,प्यारा सा बंधन, बंधें अपनी ओर है,
कहने को "दोस्ती", जग समेटे अपनी ओर है ।
भव-नैया तू तर जाएगा, न छोड़ चाह उससे तू पाने की,
राह कठिन है अपितु, चाह जगा तू पाने की,
एक आस जगा तू अपने अन्दर, मंज़िल उससे बनाने की ।
मामला तो तब खड़ा हो जब जिंदा हूँ मैं ।
उनसे अच्छे तो मेरे दुश्मन है, जो पल-पल की ख़बर रखते है ।
मरीज़-ए-हाल-ए-ख़राब अब न पुछा कीजे ।
हाल पूछने पर भी सबब-ए-आलम खोजते है ।
कोई दोस्ती कर शुबा न करे ।
ये तो वो गिला है जो आशिक़ों को मिलता है ।
