लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Monday, June 10, 2013
बहुत...
बहुत कोशिशों से रोका है खुद को,
वर्ना, मैं तो बादल था उड़ता आवारा सा ।
बहुत पेश्तर चलती है सांसें तेरे न होने से,
तुझसे ऐसा जुडुगा, सोचा न था ।
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