लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Tuesday, June 18, 2013
तेरे बिन...
क्यूँ दिल नहीं लगता तेरे बिन,
क्यूँ याद सताती रहती है, एक आस जुड़ी है साँसों से, जो याद दिलाती रहती है, एक नाम है धुंधला-धुंधला सा, एक बात सुनाई देती है, क्यूँ दिल नहीं लगता तेरे बिन, क्यूँ याद सताती रहती है ।
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