कोफ़्त होने लगी थी खुद से, गंध भी उठती थी,
आज प्यार का आईना टूटा तो रूह को बुखार आ गया ।
बहते रहते है जाने किस वास्ते ।
जो चाहा वो पाया नहीं, जो पाया वो चाहा नहीं ।
मंज़िलें उनको भी मिले जो दिन-ओ-चार रहे,
हम जैसे काफ़िरों को बस मय्यत मिला करती है ।
ता-उम्र मांगते रहे ऐ-खुदा,
आज, हाथों को बाँध मैंने आगे बढ़ना सीखा है ।
कहते है, मांग लो चाहे दुनिया नयी,
पर वो न मांगो जिसकी आस लिए जीते हो ।
पर वो न मांगो जिसकी आस लिए जीते हो ।
अश्क़ उनके लिए गिरे जिन्हें आंसुओं की कदर न थी,
और मैं, रोता रहा ता-उम्र बेगैरतों के लिए ।
No comments:
Post a Comment