Wednesday, October 2, 2013

कैसे...

कैसे झूठे चेहरे बना लेता हूँ,
लोगों को हँस कर दिखा देता हूँ,
कोई पूछ बैठता है मुझसे,
तो मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखा देता हूँ,
बड़ी अजीब सी है कशमकश ज़िन्दगी,
उलझा मैं, उलझी मेरी बंदगी,
आँखें नम कोई देखे तो आँख में कचरा बता देता हूँ,
कैसे झूठे चेहरे बना लेता हूँ ।

व्यंग सा लगने लगा है जीना,
यूँ तन्हाई को पीना,
मौजूद है भीड़ बहुत सारी,
फिर भी क्यूँ तनहा सा जीना,
कोई पूछ बैठता है मुझसे,
तो मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखा देता हूँ,
आँखें नम कोई देखे तो आँख में कचरा बता देता हूँ,
कैसे झूठे चेहरे बना लेता हूँ ॥

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