Monday, May 24, 2010

लफ़्ज़ों के जाल ने...

लफ़्ज़ों के जाल ने, ऐसा ताना-बना बुन दिया,
मैं ये बैठा सोच में, जाने क्या ये कर दिया,
क्या अलफ़ाज़ लाऊ मैं, हाल-इ-दिल बताने को,
बाँध कर लफ़्ज़ों में मुझको, यूँ बे-हाल कर दिया...
कलम भी न उठती अब तो, हाल-इ-दिल बताने को,
दर्द ही दर्द भरा है, ज़माने से छुपाने को,
मैं ये बैठा सोच में, जाने क्या ये कर दिया,
लफ़्ज़ों के जाल ने, ऐसा ताना-बना बुन दिया...

Tuesday, May 18, 2010

लफ़्ज़ों के दायरे में, मैं न आने पाउँगा...

लफ़्ज़ों के दायरे में, मैं न आने पाउँगा,
पूरे शब्दकोश में, मैं ही मैं समां जाऊंगा,
जानना थोड़ा है मुश्किल, पर समझ आ जाऊंगा,
लफ़्ज़ों के दायरे में, मैं न आने पाउँगा...

लफ्ज़ कहाँ मिलते है...

लफ्ज़ कहाँ मिलते, अलफ़ाज़ कहाँ मिलते है,
शेर-ओ-शायरी के साज़ कहाँ मिलते है,
ये तो दिल से कह देते है ग़ालिब,
वरना लिखते वक़्त अलफ़ाज़ कहाँ मिलते है....

माँ...

मैं अनजान था उनके लिए, वो थी अनजान मेरे लिए,
बढ़ा कर ममता का दामन, मुझको अपना कर लिया,
सोचता हूँ, हूँ अकेला, साथ फिर भी कर लिया,
आँचल की छओं से, दामन मेरा भर दिया,
लफ्ज़ बोलने न था पाया, मैं यूँ बैठा सोच में,
स्नेह से अपने, मेरा संसार सारा भर दिया,
सोचता हूँ, क़र्ज़ उसका कैसे चुकाऊंगा माँ मेरी,
जिसने खुशियों से, संसार मेरा भर दिया.....
उम्र के अब इस पड़ाव में, खोजता हूँ मैं उससे,
अन्धकार की राहों में, रोशनी की प्यास सी, चाहता हूँ मैं जिससे,
सोचता हूँ, क़र्ज़ उसका कैसे चुकाऊंगा माँ मेरी,
जिसने खुशियों से, संसार मेरा भर दिया....

टिक-टिक करते घड़ी के कांटे...

टिक-टिक करते घड़ी के कांटे, सूर्य तो चड़ता जाइएगा,
घड़ी परन्तु रुक भी जाये, वक़्त न रुकने पायेगा,
देख अमानुष काल की गड़ना, वक़्त तो फिर भी आयेगा,
जीवन तो है वक़्त का पहिया, ये तो बढता जाइएगा,
न रुका है, न रुकेगा, वक़्त तो पानी-धरा है,
समझ के करजा काज को प्यारे, वक़्त न फिर ये आयेगा...

नज़रें मिली कुछ इस कदर...

नज़रे मिली कुछ इस कदर, दिल बे-करार हो गया,
घायल दिल मेरा हुआ, आशिक यार हो गया...
सोचा आज कह देंगे ज़माने से, हाल-इ-दिल अपना,
पर देखते ही देखते, उनसे प्यार हो गया....
गौर-तलब था हाल-इ-दिल अपना, तबीयत मुसहरी-यार हो गया ज़माना,
नज़रे मिली कुछ इस कदर, दिल बे-करार हो गया...
बन के शायर लिखता मैं अजनबी, हाल-इ-दिल यार खो गया,
सोचा शिकायत करूँगा खुदा से, पर खुदा भी उनका यार हो गया....

खता की थी...

खता की थी, हाल-इ-दिल बताना था,
वक़्त न था मुनासिब, उनको ये समझाना था,
पर देखते ही देखते, बे-वक़्त यार हो गए,
अनजाने में उनके, गुनाहगार हो गए....
सोचा लेंगे मन, कह हाल-इ-दिल अपना,
राज़-इ-उल्फत, नज़्म-ओ-बयान,
पर जलती शमा से दीदार हो गए,
वो तो रूठ-इ-यार हो गए...

पूछा करते है वो हमसे...

पूछा करते है वो हमसे, मिज्जाज़-इ-हाल क्या है,
हाँथ में कलम, दिल में सवाल क्या है,
क्यूँ नहीं पिरो दिया करते, लफ़्ज़ों को कागज़ पर,
यूँ न बैठो मुफलिस, बताओ दिल-इ-सवाल क्या है...

आज मुद्दत बाद मैंने फिर कलम उठाया है...

आज मुद्दत बाद मैंने फिर कलम उठाया है,
आज मुद्दत बाद मेरे जी को लिखने आया है,
सोचता हूँ क्या लिखूं, दिल-इ-नादा बता,
जानती दुनिया ये सब है, क्या जो छुपने पाया है...

सुर्ख शब् की लालिमा में, रात अंधियारे की तरह,
खो गया हूँ मैं यहाँ,
तेज़ रौशनी सा खुद को, आज जलते पाया है,
आज मुद्दत बाद मैं फिर कलम उठाया है...