मैं अनजान था उनके लिए, वो थी अनजान मेरे लिए,
बढ़ा कर ममता का दामन, मुझको अपना कर लिया,सोचता हूँ, हूँ अकेला, साथ फिर भी कर लिया,
आँचल की छओं से, दामन मेरा भर दिया,
लफ्ज़ बोलने न था पाया, मैं यूँ बैठा सोच में,
स्नेह से अपने, मेरा संसार सारा भर दिया,
सोचता हूँ, क़र्ज़ उसका कैसे चुकाऊंगा माँ मेरी,
जिसने खुशियों से, संसार मेरा भर दिया.....
उम्र के अब इस पड़ाव में, खोजता हूँ मैं उससे,
अन्धकार की राहों में, रोशनी की प्यास सी, चाहता हूँ मैं जिससे,
सोचता हूँ, क़र्ज़ उसका कैसे चुकाऊंगा माँ मेरी,
जिसने खुशियों से, संसार मेरा भर दिया....
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