खता की थी, हाल-इ-दिल बताना था,
वक़्त न था मुनासिब, उनको ये समझाना था,
पर देखते ही देखते, बे-वक़्त यार हो गए,
अनजाने में उनके, गुनाहगार हो गए....
सोचा लेंगे मन, कह हाल-इ-दिल अपना,
राज़-इ-उल्फत, नज़्म-ओ-बयान,
पर जलती शमा से दीदार हो गए,
वो तो रूठ-इ-यार हो गए...
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