जब-जब दिल को समझाना चाहा, उसने दिल को बहलाना चाहा,
उसके झूठे वाडे सुनकर, खुद दिलको समझाना चाहा,
दर्द भरा रहता था दिल में, चहरे पर मुस्कान थी,
दिल तो बेबस था मेरा और वो मुझसे अनजान थी,
सोच-सोच कर मैं घुटता था, दिल ही दिल में अन्दर-अन्दर,
देख कर उनको ये लगता था, प्यार भरा हो अन्दर-अन्दर,
हिम्मत करके कहना चाहा, हाल-इ-दिल मैंने अपना,
पर देख कर उनको ये लगता शायदा मुझसे अनजान थी,
शायद मंज़ूर-इ-खुदा, हालात यही थे,
मैं भी यूं खामोश रहा,
देख कर उनको खुश होता था, यादों में मदहोश रहा,
सपनों की दुनिया में जी कर, खुद ही में बे-होश रहा,
उसके झूठे वाडे सुनकर, गुप-चुप मैं खामोश रहा...
बहुत अच्छा लिखा है|
ReplyDelete@Patali-The Village: धन्यवाद!!
ReplyDelete@Lokendra Singh Rajput: शुक्रिया!!
@Surendra Singh Bhamboo: सधन्यवाद (प्रेणनाशील लफ़्ज़ों के लिए)!!
@Ajay Kumar: सधन्यवाद (प्रेणनाशील लफ़्ज़ों के लिए)!!