Friday, February 25, 2011

नौ से पांच ज़िन्दगी...

लम्हे सिमट कर रह गए, इस नौ से पांच ज़िन्दगी में, 
साँसे अटक कर रह गयी, इस नौ से पांच ज़िन्दगी में,
ज़िन्दगी की हर सुबह, नौ से शुरू हो पांच पर सिमट कर रह गयी,
भागती ज़िन्दगी की दौड़ में, चंद घड़िया पीछे रह गयी,
लम्हे सिमट कर रह गए, इस नौ से पांच ज़िन्दगी में,
साँसे अटक कर रह गयी, इस नौ से पांच ज़िन्दगी में,
उम्र बढती रही, इस नौ से पांच ज़िन्दगी में,
पर मैं चलता रहा, इस नौ से पांच ज़िन्दगी में,
लम्हे सिमट कर रह गए, इस नौ से पांच ज़िन्दगी में,
साँसे अटक कर रह गयी, इस नौ से पांच ज़िन्दगी में...

न मिलती नज़र तुझसे अगर...

न मिलती नज़र तुझसे अगर, यह सोच कर जाने क्या करता,
दूर से तुमको देख कर ही, बस ठंडी आहें भरता,
न होता रू-ब-रू अक्स मुझसे खुद, जो तेरे मेरे अक्स साथ नहीं, 
इस कशमकश को सोच कर ही, बस ठंडी आहें भरता,
न मिलती नज़र तुझसे अगर, यह सोच कर जाने क्या करता,
दूर से तुमको देख कर ही, बस ठंडी आहें भरता...

ज़ख्म-इ-दिल देने का शौक न पाला था यारों...

ज़ख्म-इ-दिल देने का शौक न पाला था यारों, दिल्लगी में ज़ख्म लगा बैठे,
उस दरीचे पर यार को देखा, सब कुछ उस पर लुटा बैठे,
ज़ख्म आज भी हरा है, बात कल की तरह,
यादें फिर भी ताज़ा है, रात कल की तरह,
पर वो न आये, उस नयी बरसात की तरह,
छन् से टूटा ख्वाब, उस काली रात की तरह,
ज़ख्म-इ-दिल देने का शौक न पाला था यारों, दिल्लगी में ज़ख्म लगा बैठे,
उस दरीचे पर यार को देखा, सब कुछ उस पर लुटा बैठे...

Sunday, February 20, 2011

साथ तुम्हारे गुज़रा, हर लम्हा याद आने लगा...

साथ तुम्हारे गुज़रा, हर लम्हा याद आने लगा,
कदम-ब-कदम मिलते रहे, साज़ दिल गाने लगा,
जानता था, दोनों में फासले है दरमियाँ,
पर तुमको देखता रहा और लम्हा-लम्हा वक़्त गुज़रता जाने लगा,
सोचा थाम लू तुमको जाते-जाते,
पर कल मिलने का बहाना, याद आने लगा,
कदम-ब-कदम मिलते रहे, साज़ दिल गाने लगा,
साथ तुम्हारे गुज़रा, हर लम्हा याद आने लगा...

Thursday, February 17, 2011

आज अँधेरे कमरों में, कुछ रौशनी सी आई है...

आज अँधेरे कमरों में, कुछ रौशनी सी आई है,
सूरज की किरणों के संग, कुछ नर्म एहसास सा लायी है,
एक नए पल की शुरुआत है ये, या अब भी डूबा हूँ तेरे ही ख्यालों में,
न जाने क्या रौशनी के संग, साथ ले कर आई है...
 
भटका था रात भर, तेरे गम के अँधेरे में, 
जाने किसका गम था, जो रात ले कर आई थी,
आज अँधेरे कमरों में, कुछ रौशनी सी आई है,
सूरज की किरणों के संग, कुछ नर्म एहसास सा लायी है...

तनहा मैं नहीं था, रात की तरह,
तनहा रात थी, शायद मेरी तरह,
रात गुजरी थी यादों में तेरी भीग कर,
जाने किसका गम था, जो रात ले कर आई थी,
आज अँधेरे कमरों में, कुछ रौशनी सी आई है,
सूरज की किरणों के संग, कुछ नर्म एहसास लायी है...

Tuesday, February 15, 2011

लफ्ज़-ओ-हुनर तुझसे न था...

लफ्ज़-ओ-हुनर तुझसे न था, था कहीं दबा मेरे ही अंदर,
पर तेरे जाने से मुझको, मेरे मैं का रास्ता मिल गया,
वक़्त मिलता था तो कभी, रू-ब-रू हो जाता था अंदर ही अंदर,
पर तेरे जाने से मुझको, मेरे मैं का रास्ता मिल गया...

लफ्ज़ जो अधूरे से थे, खुद मेरे ही अंदर,
तड़पते रहते थे, कहीं दिल के कोनो में,
तेरे आने से उस, मैं को हासिल कर गया,
पर तेरे जाने से मुझको, मेरे मैं का रास्ता मिल गया...

ये बरसात अच्छी लगती है...

तुझसे भीगे लम्हात के बाद, ये बरसात अच्छी लगती है,
तेरे दिए दर्द के बाद, अँधेरी रात अच्छी लगती है,
तेज़ बारिश के बाद, सुनहरी धुप की चाह की तरह,
तुझसे भीगे लम्हात के बाद, ये बरसात अच्छी लगती है...

Tuesday, February 8, 2011

आज सुबह वो सूरज...

आज सुबह वो सूरज, कुछ देर से आया है,
आज न ठंडी धुप, न वो ताजगी लाया है,
जाने क्यूँ तपिश है आग जैसी, आज उनकी आँखों में,
मैं तो कल भी वही था, जो आज मुझको पाया है...

कल रात जो बरसी घटा, गम मेरा भी बह गया,
रात तरसती रही और मैं तनहा रह गया,
जाने क्यूँ तपिश है आग जैसी, आज उनकी आँखों में,
मैं तो कल भी वही था, जो आज मुझको पाया है,
आज न ठंडी धुप, न वो ताजगी लाया है,
आज सुबह वो सूरज, कुछ देर से आया है....

Friday, February 4, 2011

चाहतें बहुत है इस दिल के अन्दर...

चाहतें बहुत है ग़ालिब इस दिल के अन्दर,
पर हसरत-इ-दिल कहाँ पूरी होने पायी है,
आरज़ू दिल ही दिल में तड़पती रहती है,
धडकनें दबने न पायी है,
हम तो चाहतें है हाल-इ-दिल अपना, दुनिया को बताना,
हम न कहते है, जामने को दिखाना,
बस दिल की हसरत पूरी, नज़र चार हो जाए,
बात जुबां से निकले, दिल में घर कर जाए,
हसरत-इ-दिल पूरी हो, मुल्क के हर बाशिंदे की, ऐसी नजर-ओ-करम का दीदार हो जाए,
आरज़ू दिल ही दिल में तड़पती रहती है, धडकनें दबने न पायी है,
चाहतें बहुत है ग़ालिब इस दिल के अन्दर, पर हसरत-इ-दिल कहाँ पूरी होने पायी है...

Thursday, February 3, 2011

उनके जाने का गम नहीं...

उनके जाने का गम नहीं, गम तो इस बात का है कि जाते उनको रोक न सका,
वो गैर नहीं था, था कोई मेरा ही अपना, जिसको जाते टोक न सका,
सोचा करता था कि रोक लूँगा उनको जाते-जाते,
पर वो न रुका, शायद वो मेरा अपना न था...

कोशिशे मुद्दत की लाख भुलाने की, पर दिल न माना बात अजमाने की,
दिल का दर्द, दिल में ही लिए फिरते रहे दर-ब-दर, कोशिश न कि किस्मत अजमाने की,
दर्द बढ़ता गया, दिल तेज़ धधकता गया,
मैं लफ्ज़ कह न सका, बात दिल की दिल में रह गयी,
कोशिशे मुद्दत कि लाख भुलाने की, पर दिल न माना बात अजमाने की...

Wednesday, February 2, 2011

कोई अपना मुझको छोड़ गया...

कोई अपना मुझको छोड़ गया, यादों में तनहा छोड़ गया,
मैं पहले भी तनहा था राहों में, सिमटा था लम्हा यादों में,
वो रिश्ता मुझसे तोड़ गया, यादों में तनहा छोड़ गया,
कोई अपना मुझको छोड़ गया...

वो शायद अपना न था कभी, वो शायद सपना सा था कभी,
एक सपना रिश्ता तोड़ गया, यादों में सिमटा छोड़ गया,
मैं पहले भी तनहा था राहों में, सिमटा था लम्हा यादों में,
यादों से रिश्ता जोड़ गया, कोई अपना मुझको छोड़ गया...

दोस्तों ने पिला दी जो शराब...

दोस्तों ने पिला दी जो शराब, शराब नहीं है,
दोस्ती के रंग में डूबा हिजाब, खराब नहीं है,
हम न पीया करते थे यारों, महफिलों में बैठ कर,
रास्ते में चख ली जो शराब, शराब नहीं है...

दोस्ती का नशा ऐसा चढ़ा यारों, दुनिया बेगानी लगने लगी,
दोस्त अपने लगने लगे, दुनिया बेमानी लगने लगी,
हमने भी जाम भर कर, दोस्ती के नाम कर दिया,
थोड़ी सी जो पी ली शराब, शराब नहीं है...