चाहतें बहुत है ग़ालिब इस दिल के अन्दर,
पर हसरत-इ-दिल कहाँ पूरी होने पायी है,
आरज़ू दिल ही दिल में तड़पती रहती है,
धडकनें दबने न पायी है,
हम तो चाहतें है हाल-इ-दिल अपना, दुनिया को बताना,
हम न कहते है, जामने को दिखाना,
बस दिल की हसरत पूरी, नज़र चार हो जाए,
बात जुबां से निकले, दिल में घर कर जाए,
हसरत-इ-दिल पूरी हो, मुल्क के हर बाशिंदे की, ऐसी नजर-ओ-करम का दीदार हो जाए,
आरज़ू दिल ही दिल में तड़पती रहती है, धडकनें दबने न पायी है,
चाहतें बहुत है ग़ालिब इस दिल के अन्दर, पर हसरत-इ-दिल कहाँ पूरी होने पायी है...
No comments:
Post a Comment