Tuesday, March 29, 2011

कुछ अनकही, कुछ अनसुनी...

कुछ चेहरे हमे बे-शकल से, जाने-पहचाने लगते है,
कुछ चेहरे अपने न हो कर भी, अपने पुराने लगते है,
किसी अनजानी आँखों में, दुनिया सुहानी दिखने लगती है,
कोई नज़रें अपनी हो कर भी, बेगानी लगती है...


चाहतें बहुत थी, हसरत-इ-दिल बताने की,
पर वक़्त का आलम देख, हिम्मत न हुई दिल आजमाने की,
दो नज़रें मिलती रही, जब-तब नज़रों के इकरार में,
पर वक़्त का आलम देख, हिम्मत न हुई दिल आजमाने की...
भीड़ में गुम थे वो कहीं, हम भी गम-सुम लापता थे,
बस नज़रें ढूँढ लेती थी, एक दुसरे की नज़रों को,
चाहतें बहुत थी, हसरत-इ-दिल बताने की,
पर वक़्त का आलम देख, हिम्मत न हुई दिल आज़मान के...


कभी फुरसत से मिलिएगा, एक नज़्म सुनायेंगे,
कुछ अपने, कुछ आपके बोल गुनगुनायेंगे,
गीत के बोल चाहे अनसुने हो, खुद लफ्ज़ लिखते जायेंगे,
कभी फुरसत से मिलिएगा, एक नज़्म सुनायेंगे...
फुरसत के पल में, दर्द-इ-दिल बता जायेंगे,
वक़्त की हसरत देख, हाल-इ-दिल सुनायेंगे,
दिल के बोल चाहे अनसुने हो, खुद लफ्ज़ लिखते जायेंगे,
कभी फुरसत से मिलिएगा, एक नज़्म सुनायेंगे...


तेरी आँखों में, दो जहां खोज लेते है,
पूरी ज़मीन, सारा आसमान खोज लेते है,
क्यूँ ये चेहरा हमे अपना सा लगता है,
न जाने क्यूँ इसमें अपना सारा जहां खोज लेते है...
तेरी आँखे, जाने क्यूँ अपनेपन का एहसास देती है,
चेहरा कुछ और कहता है, नज़रें कुछ और कहती है,
झुठला कर तेरे चेहरे को, नज़रों पर यकीन मान लेते है,
तेरी आँखों में, दो जहां खोज लेते है...

Thursday, March 24, 2011

फ़िक्र उसकी करता रहा, जिसने कभी अपनी फ़िक्र न की...

फ़िक्र उसकी करता रहा, जिसने कभी फ़िक्र अपनी न की,
सब्र उसका करता रहा, जो खुद बेसब्र थी,
तलाशते रहे, ता-उम्र ज़िन्दगी जिनकी आँखों में,
वो आँखे कभी अपनी न थी...

कभी हिम्मत न की मांगने की उनसे, सोचा किये वो तो अपने ही है,
अब ये सोचता हूँ, शायद ये बात सपने सी है,
वास्ता प्यार का दे कर, लूटा किये मुझसे मेरे मैं को, 
जानता नहीं था ज़िन्दगी, इतनी बुझदिल है,
लूट लिया मुझसे मेरे मैं को, और खुद से रुखसत कर दिया,
तलाशते रहे, ता-उम्र ज़िन्दगी जिनकी आँखों में,
वो आँखे कभी अपनी न थी....

बद से बदतर होता जा रहा इंसान...

बद से बदतर होता जा रहा इंसान, अपना अक्स खोता जा रहा इंसान,
जुर्म और खून से सराबोर होती जा रही, एक-एक रग,
जुर्म और काल की, काली कूप में बढते उसके पग,
न माँ, न बाप, न बहन, न भाई अपना,
बस पैसे की भूख, और खून का सपना जीता जा रहा इंसान,
हर रिश्ते को शर्म-सार करता जा रहा इंसान,
बुराई के पथ पर बढता जा रहा इंसान...

देख इस दुर्दशा को, दिल मेरा भी जोर रोया,
पर सुधार की गुंजाईश न देख, दर्द अपना दिल में खोया,
बन के पथिक, भटकता रहा दर-ब-दर,
मातम भी न मना सका, ऐसे ये बे-जोर रोया...

Saturday, March 19, 2011

जुर्म का काला बादल लहराने लगा...

जुर्म का काला बादल लहराने लगा,
लोगो के दिलों से प्यार और स्नेह जाने लगा,
लूट और खसोट के काले बादल, घर कर गए सबके दिलों में,
आत्म-सम्मान गिरता जाने लगा,
चोरी और अय्य्याशी का रास्ता, चमकता जाने लगा,
पैसे और लहू की भूख, सबके दिल, घर बनाने लगा,
खून से रंगे अखबारों ने, मेरे दिल को बोझिल कर दिया,
लफ़्ज़ों को कागज़ पर बिखरने से रोक न सका, लफ़्ज़ों को धूमिल कर दिया,
लोगो के दिलों से प्यार और स्नेह जाने लगा,
जुर्म का काला बादल लहराने लगा...

कुछ अनसुलझे सवालों में उलझा है दिल...

कुछ अनसुलझे सवालों में उलझा है दिल,
जाने किस गम में डूबा है दिल,
तन्हाई पहले भी थी, अब भी है तेरे जाने के बाद,
पर ज़िन्दगी अब अच्छी लगती नहीं तेरे बिन...

तरुवर से गिरते सूखे पत्तों की तरह, आज खुद को पाने लगा,
शायद तेरे जाने का गम, दिल को सताने लगा,
तुम तो जुदा थे मुझसे, पहले से ही,
पर तेरी मीठी यादें न मुंह मोड़ ले मुझसे, ये गम सताने लगा...  

Friday, March 18, 2011

आज सुबह से आँखों में कुछ नमी सी थी...

आज सुबह से आँखों में कुछ नमी सी थी,
शायद उनकी झुकी नज़रों में, प्यार की कुछ कमी सी थी,
प्यार के लफ्ज़, उनकी नज़रों में धुन्दले पड़ने लगे थे,
और वो देखते रहे झुकी नज़रों के कोनो से हममे,
पर नज़रें न मिली, न दर्द हल्का हुआ,
दर्द बढता रहा और आँखों में नमी सी थी...

न शिकायत की, न गिला करेंगे कभी...

न शिकायत की, न गिला करेंगे कभी,
तुम जिसमे खुश हो, उसी ख़ुशी में हो लेंगे हम भी,
अपने अश्कों को पी लेते है, छुपा कर तुझसे नज़र,
कहीं नज़रों से झलक न जाए सच, सो नज़रें झुका लेते है अभी...

भागती ज़िन्दगी की इस तेज़ रफ़्तार में...

भागती ज़िन्दगी की इस तेज़ रफ़्तार में, कुछ पल तेरे तरुवर की ठंडी छाव मिलने पाती, तो क्या बात होती,
गुज़रा लम्हा वक़्त का, फिर से सिमट कर आता, तो क्या बात होती,
छोटी नेकरों में, भागती ज़िन्दगी फिर से लौट आती, तो क्या बात होती,
छोटी रातों में, किताबों पर सिर रख सो जाने की रातें, फिर से लौट आती तो क्या बात होती,
गोद में रखे सिर पर, ममता में भीगे हाँथों की नरमी, फिर से मिलने पाती तो क्या बात होती,
साथ तुम्हारे गुज़रे वो चार दिन, फिर से लौट आते तो क्या बात होती,
मेरे बालों में, तुम्हारी उँगलियों का खोना, फिर से होने पता, तो क्या बात होती,
होली की ठंडी फुहार, माँ की रसोई से चोरी की गुजिया, फिर से आती तो क्या बात होती,
कागज़ों में लिपटे, लफ़्ज़ों की दुनिया, यूँही थम सी न जाती, तो क्या बात होती,
गुज़रा लम्हा वक़्त का फिर से सिमट कर आता, तो क्या बात होती...

प्यार सबसे है हममे, किसी से कोई गिला नहीं...

प्यार सबसे है हममे, किसी से कोई गिला नहीं,
शायद यही वजह है, की कोई दिल से हममे मिला नहीं,
सोचते थे ज़माने में, हमसा भी कोई यार होगा, 
वो मिल जाये कहीं, उनको भी हमसे प्यार होगा,
पर गुज़रे कई ज़माने, कोई कहाँ यार मिले,
इस अनजाने शख्स को, कहाँ कोई प्यार मिले...

आज बड़ी घुटन है अन्दर...

आज बड़ी घुटन है अन्दर, कोफ़्त भी बहुत होती है,
शायद तेरा ख्याल सता रहा है, जिसकी कमी तुम्हे कभी महसूस न होती है,
मैं तो कल भी तनहा था, आज भी तनहा हूँ कल की तरह,
पर तेरे ख्यालों में, मेरी कमी महसूस न होती है...

Tuesday, March 8, 2011

बे-मतलब तेरा ख्याल, मेरे दिल को सताने लगा...

बे-मतलब तेरा ख्याल, मेरे दिल को सताने लगा,
रात-दिन, हर लम्हा मुझे तड़पाने लगा,
दूर रखना चाह, खुदसे तेरी यादों को,
पर रह-रह कर, गुज़रा हर लम्हा याद आने लगा,

क्यूँ सताने लगी तेरी यादें, सोचता रहा रात भर,
रात के बोझिल अँधेरे में, सिमटा रहा इस कदर,
भीड़ में होकर भी, तनहा खुद को पाने लगा,
कागज़ों में भीगा, हर लफ्ज़ नज़र आने लगा,
दूर रखना चाह, खुदसे तेरी यादों को,
पर रह-रह कर, गुज़रा हर लम्हा याद आने लगा,
बे-मतलब तेरा ख्याल, मेरे दिल को तड़पाने लगा...

Monday, March 7, 2011

जिनके लिए हम रुके, शाम के इंतज़ार में...

जिनके लिए हम रुके, शाम के इंतज़ार में,
वो न जाने ओझिल हो गए, किसी और के इकरार में,
हम को कह गए, मिलते है इस रात के बाद,
नज़रों से ओझिल हो गए, सूरज के साथ के साथ,
हम यूँ बैठे सोच में, दोष किसके सर करे,
हम थे बैठे जिनके इंतज़ार में, वो तो बैठे थे किसी और के इंतज़ार में...