Thursday, March 24, 2011

फ़िक्र उसकी करता रहा, जिसने कभी अपनी फ़िक्र न की...

फ़िक्र उसकी करता रहा, जिसने कभी फ़िक्र अपनी न की,
सब्र उसका करता रहा, जो खुद बेसब्र थी,
तलाशते रहे, ता-उम्र ज़िन्दगी जिनकी आँखों में,
वो आँखे कभी अपनी न थी...

कभी हिम्मत न की मांगने की उनसे, सोचा किये वो तो अपने ही है,
अब ये सोचता हूँ, शायद ये बात सपने सी है,
वास्ता प्यार का दे कर, लूटा किये मुझसे मेरे मैं को, 
जानता नहीं था ज़िन्दगी, इतनी बुझदिल है,
लूट लिया मुझसे मेरे मैं को, और खुद से रुखसत कर दिया,
तलाशते रहे, ता-उम्र ज़िन्दगी जिनकी आँखों में,
वो आँखे कभी अपनी न थी....

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