भागती ज़िन्दगी की इस तेज़ रफ़्तार में, कुछ पल तेरे तरुवर की ठंडी छाव मिलने पाती, तो क्या बात होती,
गुज़रा लम्हा वक़्त का, फिर से सिमट कर आता, तो क्या बात होती,
छोटी नेकरों में, भागती ज़िन्दगी फिर से लौट आती, तो क्या बात होती,
छोटी रातों में, किताबों पर सिर रख सो जाने की रातें, फिर से लौट आती तो क्या बात होती,
गोद में रखे सिर पर, ममता में भीगे हाँथों की नरमी, फिर से मिलने पाती तो क्या बात होती,
साथ तुम्हारे गुज़रे वो चार दिन, फिर से लौट आते तो क्या बात होती,
मेरे बालों में, तुम्हारी उँगलियों का खोना, फिर से होने पता, तो क्या बात होती,
होली की ठंडी फुहार, माँ की रसोई से चोरी की गुजिया, फिर से आती तो क्या बात होती,
कागज़ों में लिपटे, लफ़्ज़ों की दुनिया, यूँही थम सी न जाती, तो क्या बात होती,
गुज़रा लम्हा वक़्त का फिर से सिमट कर आता, तो क्या बात होती...
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