Wednesday, June 15, 2011

गहन विचारों का घमासान अन्दर होने लगा...

गहन विचारों का घमासान अन्दर होने लगा, दिल धक्-धक् कर सुबुक-सुबुक रोने लगा,
कुछ पलके भी नम थी, भीगे दिल की तरह, न जाने क्यूँ तेरी यादों से भी तनहा दिल होने लगा,
दिल कमज़ोर सा पड़ता दिख रहा था, टूटती नब्ज़ की तरह,
आज दिल के अन्दर भी, दर्द सराबोर होने लगा,
मैं था अकेला, तनहा सा, जाने क्यूँ तेरी ओर चला,
तेरे एक साथ के खातिर, कईयों से मुहं मोड़ चला,
पर नजाने क्यूँ तेरे दिल को यह मंजूर न था,
मैं था अकेला, तनहा सा, जाने क्यूँ तेरी ओर चला,
तेरे एक साथ के खातिर, कईयों से मुहं मोड़ चला...

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