फिर घनघोर घटा छा गयी नभ पर, फिर काले बादलों की फ़ौज आ गयी,
घुमड़ आये कुछ काले बादल, लगता है बरखा की ऋतु आ गयी,
घुमड़-घुमड़ शोर मचाने लगे, छोटे-छोटे बालकों की तरह,
मिलजुल कर अठखेलिया करने लगे, सखी-सहेलियों की तरह,
नन्हे-मुन्नों की तरह शोर मचाने लगे सारे, घरड-घरड, घुमड़-घुमड़,
कुछ-कुछ छटक छटक कर अठखेलिया करने लगे इधर-उधर,
कभी यहाँ तो कभी वहाँ, घूम-घूम बरसने लगे सारे,
भिगोदी धरती सारी, कर दिया हरा-भरा इधर-उधर,
कुछ प्यासे भी भीगे, गिरती कुछ बूंदों में मेरी तरह,
कुछ चातक भी चहके, गिरती कुछ बूंदों में मेरी तरह,
फिर घुमड़ आये कुछ काले बादल, फिर काले बादलों की फ़ौज आ गयी,
घनघोर घटा छाने लगी नभ पर, लगता है बरखा की ऋतु आ गयी...
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